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IkkB & 1
¼पालर्पुर गााँि की कहानी ½
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Curricular Expectation Pedagogical Process Learning Indicator
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प्रश्न 1. भारत की जनगणना के दौरान दस िर्थ में एक बार प्रत्येक गााँि का सिेक्षण वकया जाता है। पालमपरु से संबंवित
सचू नाओ ं के आिर पर वनम्न तावलका को भररएः
(क) अिवस्र्वत क्षेत्र ।
(ख) गााँि का कुल क्षेत्र
(ग) भवू म का उपयोग (हेक्टेयर में
(घ) सवु ििाएाँ
उत्तर :(क) अिवस्र्वत क्षेत्र : पडोसी गााँिों ि कस्बों से अच्छी तरह जडु ा हुआ है। वनकटतम छोटा कस्बा साहपरु एिं
वनकटतम बडा गााँि रायगंज है।
(ख) गााँि का कुल क्षेत्र : 200 + 50 + 26 = 276 हैक्टेयर
(ग) भवू म का उपयोग (हेक्टेयर में)
(घ) सवु ििाएाँ : शैवक्षक
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प्रश्न 2. खेती की आिवु नक विवियों के वलए ऐसे अविक आगतों की आिश्यकता होती है, उन्हें उद्योगों में विवनवमथत
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उत्तर : हााँ, आिवु नक कृ वर् तरीकों को कारखाने में वनवमथत अविक संसािन चावहए। एचिाईिी बीजों को अविक पानी
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चावहए और इसके सार् ही बेहतर नतीजों के वलए रासायवनक खाद, कीटनाशक भी चावहए। वकसान वसच ं ाई के वलए
नलकूप लगाते हैं। ट्रैक्टर एिं भैसर जैसी मशीनें भी प्रयोग की गयी। एचिाईिी बीजों की सहायता से गेहं की पैदािार
1300 वकलोग्राम प्रवत हैक्टेयर से बढ़कर 3200 वकलोग्राम प्रवत हैक्टेयर तक हो गई और अब वकसानों के पास बाजार
में बेचने के वलए अविक मात्रा में फालतू गेहाँ। है।
प्रश्न 3. पालमपरु में वबजली के प्रसार ने वकसानों की वकस तरह मदद की?
उत्तर : वबजली से खेतों में वस्र्त सभी नलकूपों एिं विवभन्न प्रकार के छोटे उद्योगों को विद्यतु ऊजाथ वमलती है।
पालमपरु के वकसानों की वबजली के प्रसार ने विवभन्न तरीकों से सहायता की है :
(क) इसने पालमपरु के वकसानों को अपने खेतों की वसंचाई बेहतर तरीके से करने में सहायता की | है। इससे पहले िे
रहट के द्वारा वसंचाई करते आए र्े जो अविक प्रभािशाली तरीका नहीं र्ा। वकन्तु अब वबजली की सहायता से िे
अविक बडे क्षेत्र को कम समय में अविक प्रभािशाली तरीके से सींच सकते र्े।
(ख) वबजली से वसचं ाई प्रणाली में सिु ार के कारण वकसान परू े िर्थ के दौरान विवभन्न फसलें उगा सकते र्े।
(ग) उन्हें मानसनू की बरसात पर वनभथर रहने की आिश्यकता नहीं है जो वक अवनवित एिं भ्रमणशील
(घ) वबजली के प्रयोग के कारण पालमपरु के वकसानों को बहुत से हार् के कामों एिं वचंताओ ं से मवु ि वमल गई।
प्रश्न 4. क्या वसवं चत क्षेत्र को बढ़ाना महत्त्िपणू थ है ? क्यों ?
उत्तर : वसंवचत क्षेत्र को बढ़ाना जरूरी है क्योंवक भारत में मॉनसनू की बरसात अवनवित ि भ्रमणशील है। कृ वर् के
अंतगथत आने िाली भवू म वकसानों के वलए पयाथप्त नहीं है। यवद वकसानों को वसंवचत भवू म खेती के वलए उपलब्ि हो
जाती है तो िे र्ोडी जमीन पर ही अविक उत्पादन कर सकते हैं।
प्रश्न 5. पालमपरु के 450 पररिारों में भवू म के वितरण की एक सारणी बनाइए।
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प्रश्न 6. पालमपरु में खेवतहर श्रवमकों की मज़दरू ी न्यनू तम मज़दरू ी से कम क्यों है?
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उत्तर : पालमपरु में खेवतहर मजदरू ों में काम के वलए परस्पर प्रवतस्पिाथ है। इसवलए लोग कम दरों पर मजदरू ी के वलए
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है। यवद िह अपने ही खेत पर खेती शुरू करता है तो न उसके पास इसके वलए जरूरी सािन हैं, न बीज, खाद ि
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कीटनाशक खरीदने के पैसे। एक बहुत छोटा वकसान होने के कारण उसके पास कोई उपस्कर एिं कायथशील पाँजू ी नहीं
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है। इन सब चीजों का प्रबंि करने के वलए उसे या तो वकसी बडे वकसान से या वफर वकसी व्यापारी अर्िा साहकार से
ऊाँ ची ब्याज दरों पर िन उिार लेना पडता र्ा। इतनी मेहनत करने के बाद भी इस बात की संभािना रहती र्ी वक िो
कजथ में डूब जाए जो वक सदैि उसके वलए बहुत बडी वचतं ा
का कारण रहता र्ा।
प्रश्न 10.मझोले और बडे वकसान कृ वर् से कै से पाँजू ी प्राप्त करते है? िे छोटे वकसानों से कै से वभन्न है?
उत्तर : आिवु नक कृ वर् तरीकों में बहुत से िन की आिश्यकता होती है। मझोले एिं बडे वकसानों की कुछ अपनी बचत
होती है। इस प्रकार िे जरूरी पाँजू ी का प्रबंि कर लेते हैं। दसू री ओर अविकतर छोटे वकसानों को पाँजू ी का प्रबंि करने
के वलए बडे वकसानों या व्यापाररयों से पैसा उिार लेना पडता है। इस प्रकार के ऋणों की ब्याज दर भी प्रायः अविक
होती है। इस ऋण को िापस करने के वलए उन्हें बहुत मेहनत करनी पडती है। 2 हेक्टेयर से कम भवू म िाले वकसानों को
मझोले ि बडे वकसानों की तल ु ना में अविक कवठनाइयों का सामना करना पडता है।
प्रश्न 11.सविता को वकन भात पर तेजपाल वसंह से ऋण वमला है? क्या ब्याज़ की कम दर पर बैंक से कज़थ वमलने पर
सविता की वस्र्वत अलग होती?
उत्तर : तेजपाल वसहं ने सविता को 24 प्रवतशत की ब्याज दर पर 4 महीने के वलए पैसा देना स्िीकार वकया। जो वक
बहुत अविक ब्याज दर है। सविता एक कृ वर् मजदरू के रूप में कटाई के समय 35 रुपए प्रवतवदन की दर पर उसके खेतों
में काम करने को भी सहमत होती है। तेजपाल वसंह द्वारा सविता से वलया जाने िाला ब्याज बैंक की अपेक्षा बहुत
अविक र्ा। यवद सविता इसकी अपेक्षा बैंक से उवचत ब्याज दर पर ऋण ले पाती तो उसकी हालत वनिय ही इससे
अच्छी होती।।
प्रश्न 12. अपने क्षेत्र के कुछ परु ाने वनिावसयों से बात कीवजए और वपछले 30 िर्ों में वसच
ं ाई और उत्पाद के तरीकों में
हुए पररितथनों पर एक संवक्षप्त ररपोटथ वलवखए (िैकवपपक)।
उत्तर : परु ाने वनिावसयों से बात करने पर वपछले 30 सालों में वसंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए पररितथन से मझु े
पता चला वक 30 िर्थ पहले खेती के परु ाने तरीके प्रयोग वकए जाते र्े। वकसान अपने खेतों को बैलों की सहायता से
जोतते र्े। वसंचाई की बहुत अविक सवु ििाएं नहीं र्ी। िे मॉनसनू की बरसातों पर वनभथर रहते र्े जो वक बहुत
अवनयवमत होती र्ी। रहट को उस समय कुओ ं से पानी वनकालने के वलए प्रयोग वकया जाता र्ा। वकन्तु तकनीक में
प्रगवत के सार् वकसानों ने वसचं ाई के वलए नलकूप लगिा वलए हैं और एच.िाई.िी. बीजों, रासायवनक उिथरकों एिं
कीटनाशकों की सहायता से खेती करने लगे हैं। यहााँ तक वक खेतों में ट्रैक्टर एिं मशीनों का प्रयोग वकया जाता है
वजसने जतु ाई एिं फसल कटाई को तेज कर वदया है।
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प्रश्न 13. आपके क्षेत्र में कौन से गैर-कृ वर् उत्पादन कायथ हो रहे हैं? इनकी एक संवक्षप्त सचू ी बनाइए।
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जाते हैं।
प्रश्न 14. गााँिों में और अविक गैर-कृ वर् कायथ प्रारंभ करने के वलए क्या वकया जा सकता है?
उत्तर : हमारे गााँि में लगभग 75 प्रवतशत लोग कृ वर् पर वनभथर हैं वजनमें वकसान और खेतीहर मजदरू दोनों शावमल हैं।
वकन्तु उनकी आवर्थक दशा शोचनीय है। उनकी जनसख्ं या वदन पर वदन बढ़ती जा रही है जबवक भवू म वस्र्र है। और
कृ वर् वियाओ ं में और अविक मजदरू ों को काम वमल पाने की संभािना बहुत कम है। इसवलए गैर-कृ वर् कायों में िृवि
करना बहुत जरूरी हो गया है तावक कुछ खेतीहर मजदरू ों को उनमें काम वमल सके ; जैसे वक डेयरी, विवनमाथण,
दक
ु ानदारी, पररिहन, मगु ी पालन, दजी, शैवक्षक कायथ आवद गैर-कृ वर् वियाएं । यहााँ तक वक वकसान भी इस प्रकार के
कामों में शावमल हो सकते हैं जब उनके पास खेतों में कुछ अविक काम नहीं होता हो और िे बेरोजगार हों। यह उनकी
आवर्थक वस्र्वत में सिु ार करने में सहायक वसि होगा।
पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : नौिीं निषय : अर्थशास्त्र
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पाठ्यपस्ु तक से प्रश्न
प्रश्न 1. ‘संसािन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तरः ‘संसािन के रूप में लोग वकसी देश के कायथरत लोगों को उनके ितथमान उत्पादन कौशल एिं योग्यताओ ं
का िणथन करने का एक तरीका है। यह लोगों की सकल घरे लू उत्पाद के सृजन में योगदान करने की योग्यता पर बल
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प्रश्न 2. मानि संसािन भवू म एिं भौवतक पाँजू ी जैसे अन्य संसािनों से वभन्न कै से हैं ?
उत्तरः कुछ लोग यह मानते हैं वक जनसंख्या एक दावयत्ि है न वक एक पररसंपवत्त। वकन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक
पररसंपवत्त बनाया जा सकता है यवद हम उनमें वशक्षा, प्रवशक्षण एिं वचवकत्सा सवु ििाओ ं के द्वारा वनिेश करें । वजस
प्रकार भवू म, जल, िन, खवनज आवद हमारे बहुमूपय प्राकृ वतक संसािन हैं उसी प्रकार मनष्ु य भी एक बहुमूपय संसािन
हैं। लोग राष्ट्रीय पररसपं वत्तयों के उपभोिा मात्र नहीं हैं। अवपतु िे राष्ट्रीय सपं वत्तयों के उत्पादक भी हैं। िास्ति में मानि
संसािन अन्य संसािनों जैसे वक भवू म तर्ा पाँजू ी की अपेक्षाकृ त श्रेष्ठ हैं क्योंवक िे भवू म एिं पाँजू ी का प्रयोग करते हैं।
भवू म एिं पाँजू ी स्ियं उपयोगी नहीं हो सकते।
प्रश्न 3. मानि पाँजू ी वनमाथण में वशक्षा की क्या भवू मका है?
उत्तरः मानि पाँजू ी वनमाथण अर्िा मानि संसािन विकास में वशक्षा की महत्त्िपणू थ भवू मका है। वशक्षा एिं कौशल वकसी
व्यवि की आय को वनिाथररत करने िाले मुख्य कारक हैं। वकसी बच्चे की वशक्षा और प्रवशक्षण पर वकए गए वनिेश के
बदले में िह भविष्य में अपेक्षाकृ त अविक आय एिं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रवतफल दे सकता है।
वशवक्षत लोग अपने बच्चों की वशक्षा पर अविक वनिेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है वक उन्होंने स्ियं के
वलए वशक्षा का महत्त्ि जान वलया है। यह कहने की आिश्यकता नहीं है वक यह वशक्षा ही है जो एक व्यवि को उसके
सामने उपलब्ि आवर्थक अिसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। वशक्षा श्रम की गणु ित्ता में िृवि करती
है। और कुल उत्पादकता में िृवि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।
प्रश्न 4. मानि पाँजू ी वनमाथण में स्िास््य की क्या भवू मका है?
उत्तरः मानि पाँजू ी वनमाथण अर्िा मानि संसािन विकास में स्िास््य की महत्त्िपणू थ भवू मका है।
(क) के िल एक पणू थतः स्िस्र् व्यवि ही अपने काम के सार् न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह वकसी व्यवि के
कामकाजी जीिन में महत्त्िपणू थ भवू मका अदा करता है।
(ख) एक अस्िस्र् व्यवि अपने पररिार, संगठन एिं देश के वलए दावयत्ि है। कोई भी संगठन ऐसे व्यवि को काम पर
नहीं रखेगा जो खराब स्िास््य के कारण परू ी दक्षता से काम न कर सके ।
(ग) स्िास््य न के िल वकसी व्यवि के जीिन की गणु ित्ता में सिु ार लाता है अवपतु मानि संसािन विकास में ििथन
करता है वजस पर देश के कई क्षेत्रक वनभथर करते हैं।
(घ) वकसी व्यवि का स्िास््य अपनी क्षमता एिं बीमारी से लडने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
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प्रश्न 5. वकसी व्यवि के कामयाब जीिन में स्िास््य की क्या भवू मका है?
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उत्तरः हम सभी जानते हैं वक एक स्िस्र् शरीर में ही एक स्िस्र् वदमाग वनिास करता है। स्िास््य जीिन का एक
महत्त्िपणू थ पहलू है। स्िास््य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है। स्िास््य में शारीररक, मानवसक, आवर्थक एिं
सामावजक सदृु ढता शावमल हैं। स्िास््य में पररिार कपयाण, जनसंख्या वनयंत्रण, दिा वनयंत्रण, प्रवतरक्षण एिं खाद्य
वमलािट वनिारण आवद बहुत से वियाकलाप शावमल हैं। यवद कोई व्यवि अस्िस्र् है तो िह ठीक से काम नहीं कर
सकता। वचवकत्सा सवु ििाओ ं के अभाि में एक अस्िस्र् मजदरू अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को
कम करता है। इसवलए वकसी व्यवि के कामयाब जीिन में स्िास््य महत्त्िपणू थ भवू मका वनभाता है।
प्रश्न 6. प्रार्वमक, वद्वतीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में वकस तरह की विवभन्न आवर्थक वियाएाँ संचावलत की जाती हैं ?
उत्तरः प्रार्वमक क्षेत्रक में कृ वर्, िन, पशपु ालन, मगु ी पालन, मछली पालन एिं खनन आवद आते हैं। वद्वतीयक क्षेत्रक में
विवनमाथण शावमल है।
तृतीयक क्षेत्रक में बैंवकंग, पररिहन, व्यापार, वशक्षा, बीमा, पयथटन एिं स्िास््य आवद आते हैं।
प्रश्न 7. आवर्थक और गैर–आवर्थक वियाओ ं में क्या अंतर है?
उत्तरः िे वियाएं जो देश की आय में िृवि करती हैं उन्हें आवर्थक वियाएं कहा जाता है। दसू रे शब्दों में,
जो वियाएं आय के वलए की जाती हैं उन्हें वियाएं कहा जाता है और िे वियाएं जो आय के वलए नहीं की जाती उन्हें
गैर- आवर्थक वियाएं कहा जाता है। यवद कोई मााँ वकसी होटल में खाना बनाती है और उसे उसके वलए पैसे वमलते हैं
तो यह एक आवर्थक
विया है। जब िह अपने पररिार के वलए खाना बनाती है तो िह एक गैर– आवर्थक विया कर रही है।
प्रश्न 8. मवहलाएाँ क्यों वनम्न िेतन िाले कायों में वनयोवजत होती हैं?
उत्तरः मवहलाएाँ वनम्नवलवखत कारणों से वनम्न िेतन िाले कायों में वनयोवजत होती है :
(क) बाजार में वकसी व्यवि की आय वनिाथरण में वशक्षा महत्त्िपणू थ कारकों में से एक है। भारत में मवहलाएाँ परुु र्ों की
अपेक्षा कम वशवक्षत होती हैं। उनके पास बहुत कम वशक्षा एिं वनम्न कौशल
स्तर है। इसवलए उन्हें परुु र्ों की तल
ु ना में कम िेतन वदया जाता है।
(ख) ज्ञान ि जानकारी के अभाि में मवहलाएाँ असंगवठत क्षेत्रों में कायथ करती हैं जो उन्हें कम मजदरू ी देते हैं। उन्हें अपने
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(ग) मवहलाओ ं को शारीररक रूप से कमजोर माना जाता है। इसवलए उन्हें प्रायः कम िेतन वदया जाता। है।
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हुए हैं। मध्यम रूप से वशवक्षत यिु ा िगथ के वलए ये िरदान सावबत हुए हैं।
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प्रश्न 13. क्या आप वशक्षा प्रणाली में वशवक्षत बेरोजगारों की समस्या दरू करने के वलए कुछ उपाय सझु ा सकते हैं?
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उत्तरः वशक्षा प्रणाली में वशवक्षत बेरोजगारों की समस्या दरू करने हेतु वनम्नवलवखत उपाय सहायक वसि हो सकते हैं:
(क) के िल वकताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अविक तकनीकी वशक्षा दी जाए।
(ख) वशक्षा को अविक कायोन्मख ु ी बनाया जाना चावहए। एक वकसान के बेटे को सािारण स्नातक की वशक्षा देने की
अपेक्षा इस बात का प्रवशक्षण वदया जाना चावहए वक खेत में उत्पादन कै से बढाया जा सकता है।
(ग) वशक्षा को लोगों को स्िािलंबी एिं उद्यमी बनाने के वलए प्रेररत करना चावहए। (घ) वशक्षा के वलए योजना बनाई
जानी चावहए एिं इसकी भािी संभािनाओ ं को ध्यान में रखकर इसे वियावन्ित वकया जाना चावहए।
(ड) रोजगार के अविक अिसर पैदा वकए जाने चावहए।
प्रश्न 14. क्या आप कुछ ऐसे गााँिों की कपपना कर सकते हैं जहााँ पहले रोजगार का कोई अिसर नहीं र्ा, लेवकन बाद
में बहुतायत में हो गया ?
उत्तर: हााँ, मझु े अपने माली द्वारा सनु ाई गई कहानी याद आती है। उसने बताया वक कुछ िर्थ पिू थ उसके गााँि में सभी
मलू भूत सवु ििाओ ं जैसे वक स्कूल, अस्पताल, सडकों, बाजार और यहााँ तक वक पानी ि वबजली की उवचत आपवू तथ
का भी अभाि र्ा। गााँि के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओ ं की ओर आकृ ष्ट वकया। पंचायत ने एक
स्कूल खोला वजसमें कई लोगों को रोजगार वमला। जपद ही गााँि के बच्चे िहााँ पढने लगे और िहााँ कई प्रकार की
तकनीकों का विकास हुआ। अब गााँि िालों के पास बेहतर वशक्षा, स्िास््य सवु ििाएाँ एिं पानी एिं वबजली की भी
अवचत आपवू तथ उपलब्ि र्ी। सरकार ने भी जीिन स्तर को सिु ारने के वलए विशेर् प्रयास वकए र्े। कृ वर् एिं गैर कृ वर्
वियाएाँ भी अब आिवु नक तरीकों से की जाती हैं।
प्रश्न 15. वकस पाँजू ी को आप सबसे अच्छा मानते हैं – भवू म, श्रम, भौवतक पाँजू ी और मानि पाँजू ी? क्यों ?
उत्तरः वजस प्रकार भवू म, जल, िन, खवनज हमारे बहुमूपय प्राकृ वतक संसािन हैं उसी प्रकार लोग भी बहुमूपय संसािन
हैं। लोग राष्ट्रीय पररसंपवत्तयों के उपभोिा मात्र नहीं हैं अवपतु िे राष्ट्रीय संपवत्तयों के उत्पादक भी हैं। िास्ति में मानि
ससं ािन अन्य ससं ािनों जैसे वक भवू म तर्ा पाँजू ी की अपेक्षाकृ त श्रेष्ठ हैं क्योंवक िे भवू म एिं पाँजू ी का प्रयोग करते हैं।
भवू म एिं पाँजू ी स्ियं उपयोगी नहीं हो सकते। यवद हम लोगों में वशक्षा, प्रवशक्षण एिं वचवकत्सा सवु ििाओ ं के द्वारा
वनिेश करें तो जनसंख्या के बडे भाग को पररसंपवत्त में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं।
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जापान के पास कोई प्राकृ वतक ससं ािन नहीं र्े। इस देश ने अपने लोगों पर वनिेश वकया विशेर्कर वशक्षा और स्िास््य
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के क्षेत्र में । अंततः इन लोगों ने अपने संसािनों का दक्षतापणू थ उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकवसत करते हुए
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अपने देश को समृि एिं विकवसत बना वदया है। इस प्रकार मानि–पाँजू ी अन्य सभी संसािनों की अपेक्षा अविक
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महत्त्िपणू थ है।
पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : नौिीं निषय : अर्थशास्त्र
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उत्तरः भारत में वनिथनता अनपु ात में िर्थ 1973 में लगभग 55 प्रवतशत से िर्थ 1993 में 36 प्रवतशत तक महत्त्िपूणथ
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वगरािट आई है। िर्थ 2000 में वनिथनता रे खा के नीचे के वनिथनों का अनपु ात और भी वगर कर 26 प्रवतशत पर आ गया।
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यवद यही प्रिृवत्त रही तो अगले कुछ िर्ों में वनिथनता रे खा से नीचे के लोगों की संख्या 20 प्रवतशत से भी नीचे आ
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जाएगी। यद्यवप वनिथनता रे खा से नीचे रहने िाले लोगों का प्रवतशत पिू थ के दो दशकों 1973-93 में वगरा है, वनिथन लोगों
की सख्ं या 32 करोड के लंगभग काफी समय तक वस्र्र रही। निीनतम अनमु ान; वनिथनों की सख्ं या में लगभग 26
करोड की कमी उपलेखनीय वगरािट का संकेत देते हैं।
प्रश्न 4. भारत में वनिथनता में अतं र-राज्य असमानताओ ं का एक वििरण प्रस्ततु करें ।
उत्तरः भारत में वनिथनता के कारण अग्रवलवखत हैं:
(क) औपवनिेवशक सरकार की नीवतयों ने पारंपररक हस्त-वशपपकारी को नष्ट कर वदया और िस्त्र जैसे उद्योगों के
विकास को हतोत्सावहत वकया। विकास की िीमी दर 1980 के दशक तक जारी रही। इसके पररणामस्िरूप
रोजगार के अिसर घटे और आय की िृवि दर वगरी।
(ख) भारतीय सरकार दो बातों में असफल रही आवर्थक संिवृ ि को प्रोत्साहन और जनसख्ं या िृवि पर वनयत्रं ण जो
वनिथनता चि को वस्र्र कर सकते हैं।
(ग) वसच ं ाई और हररत िावं त के प्रसार से कृ वर् क्षेत्र में रोजगार के अनेक अिसर सृवजत हुए। लेवक इनका प्रभाि भारत
के कुछ भागों तक ही सीवमत रहा। सािथजवनक और वनजी, दोनों क्षेत्रों ने कुछ रोजगार उपलब्ि कराए। लेवकन ये
रोजगार तलाश करने िाले सभी लोगों के वलए पयाथप्त नहीं हो सके । शहरों में उपयि ु नौकरी पाने में असफल अनेक
लोग ररक्शा चालक, वििे ता, गृह वनमाथण श्रवमक, घरे लू नौकर आवद के रूप में कायथ करने लगे। अवनयवमत और कम
आय के कारण ये लोग महाँगे मकानों में नहीं रह सकते र्े। िे शहरों से बाहर झवु ग्गयों में रहने लगे। विवभन्न सामावजक-
सांस्कृ वतक तत्ि जैसे-जावत, वलंग भेद और सामावजक अपिजथन जो मानि वनिथनता को बढाते हैं।
(घ) छोटे वकसानों को बीज, उिथरक, कीटनाशकों जैसे कृ वर् आगतों की खरीदारी के वलए िनरावश की जरूरत होती है।
चंवू क वनिथन कवठनाई से ही कोई बचत कर पाते हैं, िे इनके वलए कजथ लेते | हैं। वनिथनता के चलते पनु ः भगु तान
करने में असमर्थता के कारण िे ऋणग्रस्त हो जाते हैं। अतः अत्यविक ऋणग्रस्तता वनिथनता का कारण और पररणाम
दोनों हैं।
(ङ) आय असमानता भारत में वनिथनता का मख्ु य कारण हैं। इसका मख्ु य कारण भवू म और अन्य ससं ािनों का असमान
वितरण हैं।
प्रश्न 5. उन सामावजक और आवर्थक समहू ों की पहचान करें जो भारत में वनिथनता के समक्ष वनरुपाय हैं।
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उत्तरः जो सामावजक समहू वनिथनता के प्रवत सिाथविक असरु वक्षत हैं, िे अनसु वू चत जावत और अनसु वू चत जनजावत के
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पररिार हैं। इस प्रकार, आवर्थक समहू ों में सिाथविक असरु वक्षत समहू , ग्रामीण कृ र्क श्रवमक पररिार और नगरीय
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अवनयत मजदरू पररिार हैं। इसके अवतररि मवहलाओ,ं िृि लोगों और बवच्चयों को अवत वनिथन माना जाता है क्योंवक
उन्हें सव्ु यिवस्र्त ढगं से पररिार के उपलब्ि ससं ािनों तक पहुचाँ से िवं चत रखा जाता है।
प्रश्न 6. भारत में अंतथराज्यीय वनिथनता में विवभन्नता के कारण बताइए।
उत्तरः प्रत्येक राज्य में वनिथन लोगों का अनपु ात एक समान नहीं है। यद्यवप 1970 के दशक के प्रारंभ से राज्य स्तरीय
वनिथनता में सदु ीघथकावलक कमी हुई है, वनिथनता कम करने में सफलता की दर विवभन्न राज्यों में अलग-अलग है। 20
राज्यों और कें द्र शावसत प्रदेशों में वनिनथता अनपात राष्ट्रीय औसत से कम है। दसू री ओर, वनिथनता अब भी उडीसा,
वबहार, असम, वत्रपरु ा और उत्तर प्रदेश में एक गंभीर समस्या है। उडीसा और वबहार िमशः 47 और 43 प्रवतशत
वनिथनता औसत के सार् दो सिाथविक वनिथन राज्य बने हुए हैं। इन राज्यों में ग्रामीण और शहरी दोनों प्रकार की वनिथनता
का औसत अविक है। उडीसा, मध्य प्रदेश, वबहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण वनिथनता के सार् नगरीय वनिथनता भी
अविक है। इसकी तुलना में के रल, जम्म-ू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तवमलनाडु, गजु रात और पविम बंगाल में वनिथनता में
उपलेखनीय वगरािट आई है। अनाज का सािथजवनक वितरण, मानि संसािन विकास पर अविक ध्यान, अविक कृ वर्
विकास, भवू म सिु ार उपायों से इन राज्यों में वनिथनता कम करने में सहायता वमली है।
प्रश्न 7. िैविक वनिथनता की प्रिृवत्तयों की चचाथ करें ।
उत्तरः विकासशील देशों में अत्यतं आवर्थक वनिथनता में रहने िाले लोगों; विि बैंक की पररभार्ा के अनसु ार प्रवतवदन
1 डॉलर से कम पर जीिन वनिाथह करना; का अनपु ात 1990 के 28 प्रवतशत से वगर कर 2001 में 21 प्रवतशत हो गया
है। यद्यवप 1980 से िैविक वनिथनता में उपलेखनीय वगरािट आई है, लेवकन इसमें िृहत क्षेत्रीय वभन्नताएाँ पाई जाती हैं।
तीव्र आवर्थक प्रगवत और मानि संसािन विकास में िृहत वनिेश के कारण चीन और दवक्षण-पिू थ एवशया के देशों में
वनिथनता में विशेर् कमी आई है। चीन में वनिथनों की संख्या 1981 के 60.6 करोड से घट कर 2001 में 21.2 करोड हो
गई है। दवक्षण एवशया के देशों (भारत, पावकस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्ला देश, भटू ान) में वनिथनों की संख्या में
वगरािट इतनी तीव्र नहीं है। जबवक लैवटन अमेररका में वनिथनता का अनपु ात पहले जैसा ही है, सब-सहारा अफ्रीका में
वनिथनता िास्ति में 1981 के 41 प्रवतशत से बढ़कर 2001 में 46 प्रवतशत हो गई है। विि विकास ररपोटथ के अनसु ार
नाइजीररया, बांग्ला देश और भारत में अब भी बहुत सारे लोग प्रवतवदन 1 डॉलर से कम पर जीिन वनिाथह कर रहे है।
रूस जैसे पिू थ समाजिादी देशों में भी वनिथनता पनु ः व्याप्त हो गई, जहााँ पहले आविकाररक रूप से कोई वनिथनता र्ी।
प्रश्न 8. वनिथनता उन्मल
ू न की ितथमान सरकारी रणनीवत की चचाथ करें ।
उत्तरः सरकार की ितथमान वनिथनता-वनरोिी रणनीवत मोटे तौर पर दो कारकों पर आिाररत है।
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(क) आवर्थक सिं वृ ि को प्रोत्साहनः विकास की उच्च दर ने वनिथनता को कम करने में एक महत्त्िपणू थ भवू मका वनभाई
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है। 1980 के दशक से भारत की आवर्थक संिवृ िदर विि में सबसे अविक रही। संिवृ ि दर 1970 के दशक के
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करीब 3.5 प्रवतशत के औसत से बढ़कर 1980 और 1990 के दशक । में 6 प्रवतशत के करीब पहुचाँ गई । इसवलए यह
स्पष्ट होता जा रहा है वक आवर्थक सिं वृ ि और वनिथनता उन्मलू न के बीच एक घवनष्ठ सबं िं है। आवर्थक सिं वृ ि अिसरों
को व्यापक बना देती है और मानि विकास में वनिेश के वलए आिश्यक संसािन उपलब्ि कराती है।
(ख) लवक्षत वनिथनता-वनरोिी कायथिमः सरकार ने वनिथनता को समाप्त करने के वलए कई वनिथनता–वनरोिी कायथिम
चलाए। जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अविवनयम 2005 (एन.आर. ई.जी.ए.), प्रिानमंत्री रोजगार
योजना (पी.एम.आर.िाई.), ग्रामीण रोजगार सृजन, स्िणथ जयंती ग्राम स्िरोजगार योजना
(एस.जी.एस.िाई.), प्रिानमत्रं ी ग्रामोदय योजना (पी.एम.जी.िाई.), अत्ं योदय अन्न । योजना (ए.ए.िाई.), राष्ट्रीय काम
के बदले अनाज।
प्रश्न 9. वनम्नवलवखत प्रश्नों के सक्ष
ं ेप में उत्तर दें :
(क) मानि वनिथनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) वनिथनों में भी सबसे वनिथन कौन हैं?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अविवनयम, 2005 की मख्ु य विशेर्ताएाँ क्या हैं?
उत्तरः
(क) ‘मानि वनिथनता की अििारणा के िल आय की कमी तक सीवमत नहीं है। इसका अर्थ है वकसी व्यवि को
राजनीवतक, सामावजक और आवर्थक अिसरों का ‘उवचत स्तर न वमलना। अनपढ़ता, रोजगार के अिसर में
कमी, स्िास््य सेिा की सवु ििाओ ं और सफाई व्यिस्र्ा में कृ मी, जावत, वलंग भेद आवद मानि वनिथनता के कारक हैं।
(ख) मवहलाओ,ं िृि लोगों और बच्चों को अवत वनिथन माना जाता है क्योंवक उन्हें सव्ु यिवस्र्त ढगं से पररिार के
उपलब्ि संसािनों तक पहुचाँ से िंवचत रखा जाता है।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अविवनयम 2005 (एन.आर.ई.जी.ए.) की विशेर्ताएाँ अग्रवलवखत हैं:
– राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अविवनयम 2005 (एन.आर.ई.जी.ए.) को वसतबं र 2005 में पाररत वकया गया।
– प्रत्येक ग्रामीण पररिार को 100 वदन के सवु नवित रोजगार का प्राििान करता है।
– प्रारंभ में यह वििेयक प्रत्येक िर्थ देश के 200 वजलों में और बाद में इस योजना का विस्तार 600 वजलों में वकया
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गया।
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– कें द्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोर् भी स्र्ावपत करे गी। इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कायाथन्ियन के
वलए राज्य रोजगार गारंटी कोर् की स्र्ापना करें गी। कायथिम के अंतगथत अगर आिेदक को 15 वदन के अंदर रोजगार
उपलब्ि नहीं कराया गया तो िह दैवनक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।
पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : नौिीं निषय : अर्थशास्त्र
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प्रश्न 2. कौन लोग खाद्य असरु क्षा से अविक ग्रस्त हो सकते हैं?
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उत्तरः भवू महीन जो र्ोडी बहुत अर्िा नगण्य भवू म पर वनभथर हैं।
(क) पारंपररक दस्तकार
(ख) पारंपररक सेिाएाँ प्रदान करने िाले लोग
(ग) अपना छोटा-मोटा काम करने िाले कामगार
(घ) वभखारी
(ङ) शहरी कामकाजी मजदरू
(च) अनसु वू चत जावत, अनसु ूवचत जनजावत और अन्य वपछडी जावतयों के कुछ िगों के लोग
(छ) प्राकृ वतक आपदाओ ं से प्रभावित लोग
(झ) गभथिती तर्ा दिू वपला रही मवहलाएाँ तर्ा पााँच िर्थ से कम उम्र के बच्चे
प्रश्न 3. भारत में कौन से राज्य खाद्य असरु क्षा से अविक ग्रस्त हैं?
उत्तरः भारत में उत्तर प्रदेश (पिू ी और दवक्षण-पिू ी वहस्से), वबहार, झारखडं , उडीसा, पविम बगं ाल, छत्तीसगढ़, मध्य
प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य की दृवष्ट से असरु वक्षत लोगों की सिाथविक संख्या है।
प्रश्न 4. क्या आप मानते हैं वक हररत िावं त ने भारत को खाद्यान्न में आत्मवनभथर बना वदया है? कै से?
उत्तरः स्ितंत्रता के पिात् खाद्यान्नों में आत्मवनभथरता प्राप्त करने के सभी उपाय वकए गए। भारत ने कृ वर् में एक नयी
रणनीवत अपनाई। जैस–े हररत िावं त के कारण गेहाँ उत्पादन में िृवि हुई। गेहाँ की सफलता के बाद चािल के क्षेत्र में इस
सफलता की पनु रािृवत्त हुई। पंजाब और हररयाणा में सिाथविक िृवि दर दजथ की गई, जहााँ अनाजों का उत्पादन 1964-
65 के 72.3 लाख टन की तल ु ना में बढ़कर 1995-96 में 3.03 करोड टन पर पहुचाँ गया, जो अब तक का सिाथविक
ऊाँ चा ररकाडथ र्ा। दसू री तरफ, तवमलनाडु और आध्रं प्रदेश में चािल के उत्पादन में उपलेखनीय िृवि हुई अतः हररत
िांवत ने भारत को काफी हद तक खाद्यान्न में आत्मवनभथर बना वदया है।
प्रश्न 5. भारत में लोगों का एक िगथ अब भी खाद्य से िवं चत है? व्याख्या कीवजए।
उत्तरः यद्यवप भारत में लोगों का एक बडा िगथ खाद्य एिं पोर्ण की दृवष्ट से असरु वक्षत है, परंतु इससे सिाथविक प्रभावित
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िगों में हैं: ग्रामीण क्षेत्रों में भवू महीन पररिार जो र्ोडी बहुत अर्िा. नगण्य भवू म पर वनभथर हैं, कम िेतन पाने िाले लोग,
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शहरों में मौसमी रोजगार पाने िाले लोग। अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत और अन्य वपछडी जावतयों के कुछ
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िगों (इनमें से वनचली जावतयााँ) का या तो भवू म काआिार कमजोर होता है। िे लोग भी खाद्य की दृवष्ट से सिाथविक
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असरु वक्षत होते हैं, जो प्राकृ वतक आपदाओ ं से प्रभावित हैं और वजन्हें काम की तलाश में दसू री जगह जाना पडता है।
खाद्य असरु क्षा से ग्रस्त आबादी का बडा भाग गभथिती तर्ा दिू वपला रही मवहलाओ ं तर्ा पााँच िर्थ से कम उम्र
के बच्चों का है।
प्रश्न 6. जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पवू तथ पर क्या प्रभाि होता है?
उत्तरः वकसी प्राकृ वतक आपदा जैसे, सख
ू े के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में वगरािट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्र में
खाद्यान्न की कमी हो जाती है। खाद्यान्न की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊाँ ची कीमतों पर खाद्य
पदार्थ नहीं खरीद सकते। अगर यह आपदा अविक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की वस्र्वत पैदा हो सकती
है जो अकाल की वस्र्वत बन सकती है।
प्रश्न 7. मौसमी भख
ु मरी और दीघथकावलक भख
ु मरी में भेद कीवजए?
उत्तरः दीघथकावलक भख
ु मरीः यह मात्रा एि/ं या गणु ित्ता के आिार पर अपयाथप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है।
गरीब लोग अपनी अत्यंत वनम्न आय और जीवित रहने के वलए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण
दीघथकावलक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
मौसमी भुखमरीः यह फसल उपजाने और काटने के चि से संबंवित है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृ वर् वियाओ ं की
मौसमी प्रकृ वत के कारण तर्ा नगरीय क्षेत्रों में अवनयवमत श्रम के कारण होती है, जैसेः बरसात के मौसम में अवनयत
वनमाथण श्रवमक को कम काम रहता है।
प्रश्न 8. गरीबों को खाद्य सरु क्षा देने के वलए सरकार ने क्या वकया? सरकार की ओर से शरू
ु की गई वकन्हीं दो
योजनाओ ं की चचाथ कीवजए।
उत्तरः
(क) सािथजवनक वितरण प्रणालीः भारतीय खाद्य वनगम द्वारा अविप्राप्त अनाज को सरकार विवनयवमत राशन दक ु ानों के
माध्यम से समाज के गरीब िगों में वितररत करती है। इसे सािथजवनक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) कहते हैं। अब
अविकांश क्षेत्रों, गााँिों, कस्बों और शहरों में राशन की दक
ु ानें हैं। सािथजवनक वितरण प्रणाली खाद्य सरु क्षा के वलए
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भारतीय सरकार द्वारा उठाया गया महत्िपूणथ कदम है। राशन की दक ु ानों में, वजन्हें उवचत दर िाली दक
ु ानें कहा जाता है,
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जहााँ चीनी खाद्यान्न और खाना पकाने के वलए वमट्टी के तेल का भडं ार होता है।
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सशं ोवित सािथजवनक वितरण प्रणाली (आर.पी.डी.एस) को 1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में संशोवित सािथजवनक
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वितरण प्रणाली शरुु की गई। इसका लक्ष्य दरू -दराज और वपछडे क्षेत्रों में सािथजवनक वितरण प्रणाली से लाभ पहुचाँ ाना
र्ा। लवक्षत सािथजवनक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस) को जनू 1997 से सभी क्षेत्रों में गरीबों को लवक्षत करने के
वसिांत को अपनाने के वलए प्रारंभ की गई। यह पहला मौका र्ा जब वनिथनों और गैर-वनिथनों के वलए विभेदक कीमत
नीवत अपनाई गई।
(ख) अत्ं योदय अन्न योजना (ए.ए.िाई) और अन्नपणू ाथ योजना (ए.ए.एस.)। ये योजनाएाँ िमशः ‘गरीबों में भी
सिाथविक गरीब’ और ‘दीन िररष्ठ नागररक समहू ों पर लवक्षत हैं। इस योजना का वियान्ियन पी.डी.एस के पहले से ही
मौजदू नेटिकथ के सार् जोडा गया।
प्रश्न 9. सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर : बफर स्टॉक भारतीय खाद्य वनगम (एफ.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अविप्राप्त अनाज, गेहाँ और चािल
का भंडार है। भारतीय खाद्य वनगम अविशेर् उत्पादन िाले राज्यों में वकसानों से गेहाँ और चािल । खरीदता है। वकसानों
को उनकी फसल के वलए पहले से घोवर्त कीमतें दी जाती हैं। इस मपू य को न्यनू तम समवर्थत कीमत कहा जाता है। इन
फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बआ
ु ई के मौसम से पहले सरकारे न्यनू तम समवर्थत कीमत की
घोर्णा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं। ऐसा कमी िाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब िगों में
बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के वलए वकया जाता है। इस कीमत को वनगथम कीमत भी कहते हैं।
प्रश्न 10. वटप्पणी वलखें :
(क) न्यनू तम समवर्थत कीमत
(ख) बफर स्टॉक
(ग) वनगथम कीमत
(घ) उवचत दर की दक
ु ान
उत्तर :
(क) न्यनू तम समवर्थत कीमत: भारतीय खाद्य वनगम अविशेर् उत्पादन िाले राज्यों में वकसानों से गेहाँ और चािल
खरीदता है। वकसानों को उनकी फसल के वलए पहले से घोवर्त कीमतें दी जाती हैं। इस मूपय को न्यनू तम समवर्थत
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कीमत कहा जाता है। सरकार फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बआ ु ई के मौसम से पहले न्यनू तम
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समवर्थत कीमत की घोर्णा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं।
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(ख) बफर स्टॉकः बफर स्टॉक भारतीय खाद्य वनगम (एप्फ.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अविप्राप्त अनाज, गेहाँ
और चािल का भंडार है। भारतीय खाद्य वनगम अविशेर् उत्पादन िाले राज्यों में वकसानों से गेहाँ और चािल खरीदता
है। वकसानों को उनकी फसल के वलए पहले से घोवर्त कीमतें दी जाती हैं। इसे मूपय को न्यनू तम समवर्थत कीमत कहा
जाता है। सरकार फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बआ
ु ई के मौसम से पहले न्यनू तम समवर्थत कीमत
की घोर्णा करती है। खरीदे हुए अनाज को खाद्य भंडारों में रखा जाता हैं। ऐसा कमी िाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब
िगों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के वलए वकया जाता है। इस कीमत को वनगथम कीमत भी
कहते हैं।
(ग) वनमथम कीमतः फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बआ
ु ई के मौसम से पहले सरकार न्यनू तम
समवर्थत कीमत की घोर्णा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भडं ारों में रखे जाते हैं। ऐसा कमी िाले क्षेत्रों में और
समाज के गरीब िगों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के वलए वकया जाता है। इस कीमत को
वनगथम कीमत कहते हैं।
(घ) उवचत दर िाली दक ु ानेंः भारतीय खाद्य वनगम द्वारा अविप्राप्त अनाज को सरकार विवनयवमत राशन दक ु ानों के
माध्यम से समाज के गरीब िगों में वितररत करती है। राशन की दक ु ानों में, वजन्हें उवचत दर िाली दकु ानें कहा जाता है,
पर चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के वलए वमट्टी के तेल का भंडार होता है। ये लागों को सामान बाजार कीमत से
कम कीमत पर देती है। अब अविकाश ं क्षेत्रों, गााँिों, कस्बों और शहरों में राशन की दक ु ानें हैं।
प्रश्न 11. राशन की दक
ु ानों के संचालन में क्या समस्याएाँ हैं? ।
उत्तरः पी.डी.एस. डीलर अविक लाभ कमाने के वलए अनाज को खल ु े बाजार में बेचना, राशन दक
ु ानों में घवटया
अनाज बेचना, दक ु ान कभी-कभार खोलना इत्यावद करते हैं। राशन दक
ु ानों में घवटया वकस्म के अनाज का पडा रहना
आम बात है, जो वबक नहीं पाता। यह एक बडी समस्या सावबत हो रही है।
प्रश्न 12. खाद्य और सबं वं ित िस्तओ
ु ं को उपलब्ि कराने में सहकारी सवमवतयों की भवू मका पर एक वटप्पणी वलखें।
उत्तरः भारत में विशेर्कर देश के दवक्षणी और पविमी भागों में सहकारी सवमवतयााँ भी खाद्य सरु क्षा में एक महत्त्िपणू थ
भवू मका वनभा रही हैं।
(क) सहकारी सवमवतयााँ वनिथन लोगों को खाद्यान्न की वबिी के वलए कम कीमत िाली दक
ु ानें खोलती हैं।
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(ख) वदपली में मदर डेयरी उपभोिाओ ं को वदपली सरकार द्वारा वनिाथररत वनयंवत्रत दरों पर दिू और सवब्जयााँ उपलब्ि
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