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How Sunderkand paath should be done:
Sunderkand can be done any time, any day with or without music. However following directives will be helpful for Bhakt.
1. If you are reciting alone, it is better to start early morning in Brahma Muhurat at 4am by or before 6am.
2. A group Sunderkand can be done any time. But it should be done after 7pm so that most people can assemble for the paath. Group Sunderkand should be done in
musical format.
3. Sunderkand can also be done in group with music around 5 am on Tuesdays, Saturdays, on full moon days and no moon days – poornima or amavasya.
4. Discipline should be maintained. No attachment to worldly affairs. Complete devotion is important. Do not take pause or use cell phones. Keep yourself clean so that
you do not require any break. No discussion or chit chatting during Saunderkand.
5. Before attending or starting Sunderkand, it is advisable to understand the meaning of the Shlokas and comprehend the context of all the verses.
6.Free BedtimeSunderkand,
Before commencing Reading take bath and wear saffron or yellow colored clothes.
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11/11/2019 स ूण सुंदरका अ ाय Sundarkand Complete Chapter Hindi हदी – HariBhakt | History, Facts, Awareness of Hinduism
7. Sunderkand should be done with empty stomach and preferably while fasting on Saturdays or Tuesdays.
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8. Start Sunderkand with Aavahan [invitation verses of shri Hanumanji] and end with Bidai.
choiceHanuman
9. Focus on Shree in your Jiinbox.
idol and start reciting Sunderkand. Recitement should be completed start to nish without any break. Once you have internalized
Sunderkand, you can even read in your mind, closing eyes thinking about Hanuman Ji.
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How to start Sunderkand Paath?
सुंदरका म हनुमान का लंका ान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटना म आते ह। नीचे सुंदरका से जुड़ घटना म क वषय सूची दी गई ह। आप
जस भी घटना के बार म पढ़ना चाहते ह उसक लक पर क कर।
|| सुंदरका ||
स ूण सुंदरका अ ाय से सकारा कश का संचार
Sundarkhand Complete Chapter Unleashes Powerful Positive
Energy
सुंदरका : पंचम सोपान-मंगलाचरण
ोक :
शा ं शा तम मेयमनघं नवाणशा दं
ाश ुफणी से म नशं वेदा वे ं वभुम।्
रामा ं जगदी रं सुरगु ं मायामनु ं ह र
व ेऽहं क णाकरं रघुवरं भूपालचूडाम णम्॥1॥
भावाथ:-शा , सनातन, अ मेय ( माण से पर), न ाप, मो प परमशा दने वाले, ा, श ु और शेषजी से नरंतर से वत, वेदा के ारा जानने यो ,
सव ापक, दवताओं म सबसे बड़, माया से मनु प म दखने वाले, सम पाप को हरने वाले, क णा क खान, रघुकुल म े तथा राजाओं के शरोम ण राम
कहलाने वाले जगदी र क म वंदना करता ँ ॥1॥
ना ा ृहा रघुपते दयेऽ दीये
स ं वदा म च भवान खला रा ा।
भ य रघुपुंगव नभरां मे
कामा ददोषर हतं कु मानसं च॥2॥
भावाथ:-ह रघुनाथजी! म स कहता ँ और फर आप सबके अंतरा ा ही ह (सब जानते ही ह) क मेर दय म ू सरी कोई इ ा नह ह। ह रघुकुल े ! मुझे अपनी
नभरा (पूण) भ दी जए और मेर मन को काम आ द दोष से र हत क जए॥2॥
अतु लतबलधामं हमशैलाभदहं
दनुजवनकृ शानुं ा ननाम ग म्।
सकलगुण नधानं वानराणामधीशं
रघुप त यभ ं वातजातं नमा म॥3॥
:-अतुल बल के धाम, सोने के पवत (सुमे ) के समान का यु शरीर वाले, द पी वन (को सं करने) के लए अ प, ा नय म अ ग , संपूण गुण के
नधान, वानर के ामी, ी रघुनाथजी के य भ पवनपु ी हनुमान्जी को म णाम करता ँ ॥3॥
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चौपाई :
जामवंत के बचन सुहाए। सु न हनुमंत दय अ त भाए॥
तब ल ग मो ह प रखे तु भाई। स ह ुख कं द मूल फल खाई॥1॥
भावाथ:-जा वान् के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्जी के दय को ब त ही भाए। (वे बोले-) ह भाई! तुम लोग ुःख सहकर, क -मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह
दखना॥1॥
जब ल ग आव सीत ह दखी। होइ ह काजु मो ह हरष बसेषी॥
यह क ह नाइ सब क ँ माथा । चलेउ हर ष हयँ ध र रघुनाथा॥2॥
भावाथ:-जब तक म सीताजी को दखकर (लौट) न आऊँ । काम अव होगा, क मुझे ब त ही हष हो रहा ह। यह कहकर और सबको म क नवाकर तथा दय
म ी रघुनाथजी को धारण करके हनुमान्जी ह षत होकर चले॥2॥
सधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कू द चढ़उ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरके उ पवनतनय बल भारी॥3॥
भावाथ:-समु के तीर पर एक सुंदर पवत था। हनुमान्जी खेल से ही (अनायास ही) कू दकर उसके ऊपर जा चढ़ और बार-बार ी रघुवीर का रण करके अ ंत
बलवान् हनुमान्जी उस पर से बड़ वेग से उछले॥3॥
जे ह ग र चरन दइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरतं ा॥
ज म अमोघ रघुप त कर बाना। एही भाँ त चलेउ हनुमाना॥4॥
भावाथ:- जस पवत पर हनुमान्जी पैर रखकर चले ( जस पर से वे उछले), वह तुरतं ही पाताल म धँस गया। जैसे ी रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता ह, उसी तरह
हनुमान्जी चले॥4॥
जल न ध रघुप त ू त बचारी। त मैनाक हो ह म हारी॥5॥
भावाथ:-समु ने उ ी रघुनाथजी का ू त समझकर मैनाक पवत से कहा क ह मैनाक! तू इनक थकावट ू र करने वाला हो (अथात् अपने ऊपर इ व ाम द)॥
5॥
दोहा :
हनूमान ते ह परसा कर पु न क नाम।
राम काजु क बनु मो ह कहाँ ब ाम॥1॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने उसे हाथ से छ दया, फर णाम करके कहा- भाई! ी रामचं जी का काम कए बना मुझे व ाम कहाँ?॥1॥
चौपाई :
जात पवनसुत दव दखा। जान क ँ बल बु बसेषा॥
सुरसा नाम अ ह कै माता। पठइ आइ कही ते ह बाता॥1॥
भावाथ:-दवताओं ने पवनपु हनुमान्जी को जाते ए दखा। उनक वशेष बल-बु को जानने के लए (परी ाथ) उ ने सुरसा नामक सप क माता को भेजा,
उसने आकर हनुमान्जी से यह बात कही-॥1॥
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भावाथ:-आज दवताओं ने मुझे भोजन दया ह। यह वचन सुनकर पवनकु मार हनुमान्जी ने कहा- ी रामजी का काय करके म लौट आऊँ और सीताजी क सुचना भु
को सुना ू ँ,॥2॥
तब तव बदन पै ठहउँ आई। स कहउँ मो ह जान द माई॥
कवने ँ जतन दइ न ह जाना। स स न मो ह कहउ हनुमाना॥3॥
भावाथ:-तब म आकर तु ार मुँह म घुस जाऊँ गा (तुम मुझे खा लेना)। ह माता! म स कहता ँ , अभी मुझे जाने द। जब कसी भी उपाय से उसने जाने नह दया, तब
हनुमान्जी ने कहा- तो फर मुझे खा न ले॥3॥
जोजन भ र ते ह बदनु पसारा। क प तनु क ुगुन ब ारा ॥
सोरह जोजन मुख ते ह ठयऊ। तुरत पवनसुत ब स भयऊ॥4॥
भावाथ:-उसने योजनभर (चार कोस म) मुँह फै लाया। तब हनुमान्जी ने अपने शरीर को उससे ू ना बढ़ा लया। उसने सोलह योजन का मुख कया। हनुमान्जी तुरतं
ही ब ीस योजन के हो गए॥4॥
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु ू न क प प दखावा॥
सत जोजन ते ह आनन क ा। अ त लघु प पवनसुत ली ा॥5॥
भावाथ:-जैसे-जैसे सुरसा मुख का व ार बढ़ाती थी, हनुमान्जी उसका ू ना प दखलाते थे। उसने सौ योजन (चार सौ कोस का) मुख कया। तब हनुमान्जी ने
ब त ही छोटा प धारण कर लया॥5॥
बदन पइ ठ पु न बाहर आवा। मागा बदा ता ह स नावा॥
मो ह सुर जे ह ला ग पठावा। बु ध बल मरमु तोर म पावा॥6॥
भावाथ:-और उसके मुख म घुसकर (तुरतं ) फर बाहर नकल आए और उसे सर नवाकर वदा माँगने लगे। (उसने कहा-) मने तु ार बु -बल का भेद पा लया,
जसके लए दवताओं ने मुझे भेजा था॥6॥
दोहा :
राम काजु सबु क रह तु बल बु नधान।
आ सष दइ गई सो हर ष चलेउ हनुमान॥2॥
भावाथ:-तुम ी रामचं जी का सब काय करोगे, क तुम बल-बु के भंडार हो। यह आशीवाद दकर वह चली गई, तब हनुमान्जी ह षत होकर चले॥2॥
चौपाई :
न सच र एक सधु म ँ रहई। क र माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाह । जल बलो क त कै प रछाह ॥1॥
भावाथ:-समु म एक रा सी रहती थी। वह माया करके आकाश म उड़ते ए प य को पकड़ लेती थी। आकाश म जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल म उनक
परछा दखकर॥1॥
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। ए ह ब ध सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान् कहँ क ा। तासु कपट क प तुरत ह ची ा॥2॥
भावाथ:-उस परछा को पकड़ लेती थी, जससे वे उड़ नह सकते थे (और जल म गर पड़ते थे) इस कार वह सदा आकाश म उड़ने वाले जीव को खाया करती
थी। उसने वही छल हनुमान्जी से भी कया। हनुमान्जी ने तुरतं ही उसका कपट पहचान लया॥2॥
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नाना त फल फू ल सुहाए। खग मृग बृंद द ख मन भाए॥
सैल बसाल द ख एक आग। ता पर धाइ चढ़उ भय ाग॥4॥
भावाथ:-अनेक कार के वृ फल-फू ल से शो भत ह। प ी और पशुओ ं के समूह को दखकर तो वे मन म (ब त ही) स ए। सामने एक वशाल पवत दखकर
हनुमान्जी भय ागकर उस पर दौड़कर जा चढ़॥4॥
उमा न कछ क प कै अ धकाई। भु ताप जो काल ह खाई॥
ग र पर च ढ़ लंका ते ह दखी। क ह न जाइ अ त ुग बसेषी॥5॥
भावाथ:-( शवजी कहते ह-) ह उमा! इसम वानर हनुमान् क कु छ बड़ाई नह ह। यह भु का ताप ह, जो काल को भी खा जाता ह। पवत पर चढ़कर उ ने लंका
दखी। ब त ही बड़ा कला ह, कु छ कहा नह जाता॥5॥
अ त उतंग जल न ध च ँ पासा। कनक कोट कर परम कासा॥6॥
भावाथ:-वह अ ंत ऊँ चा ह, उसके चार ओर समु ह। सोने के परकोट (चहारदीवारी) का परम काश हो रहा ह॥6॥
छं द :
कनक को ट ब च म न कृ त सुंदरायतना घना।
चउह ह सुब बीथ चा पुर ब ब ध बना॥
गज बा ज ख र नकर पदचर रथ ब थ को गनै।
ब प न सचर जूथ अ तबल सेन बरनत न ह बनै॥1॥
भावाथ:- व च म णय से जड़ा आ सोने का परकोटा ह, उसके अंदर ब त से सुंदर-सुंदर घर ह। चौराह, बाजार, सुंदर माग और ग लयाँ ह, सुंदर नगर ब त कार
से सजा आ ह। हाथी, घोड़, ख र के समूह तथा पैदल और रथ के समूह को कौन गन सकता ह! अनेक प के रा स के दल ह, उनक अ ंत बलवती सेना
वणन करते नह बनती॥1॥
बन बाग उपबन बा टका सर कू प बाप सोहह ।
नर नाग सुर गंधब क ा प मु न मन मोहह ॥
क ँ माल दह बसाल सैल समान अ तबल गजह ।
नाना अखार भर ह ब ब ध एक एक तजह ॥2॥
भावाथ:-वन, बाग, उपवन (बगीचे), फु लवाड़ी, तालाब, कु एँ और बाव लयाँ सुशो भत ह। मनु , नाग, दवताओं और गंधव क क ाएँ अपने स दय से मु नय के भी
मन को मोह लेती ह। कह पवत के समान वशाल शरीर वाले बड़ ही बलवान् म (पहलवान) गरज रह ह। वे अनेक अखाड़ म ब त कार से भड़ते और एक-
ू सर को ललकारते ह॥2॥
क र जतन भट को ट बकट तन नगर च ँ द स र ह ।
क ँ म हष मानुष धेनु खर अज खल नसाचर भ ह ॥
ए ह ला ग तुलसीदास इ क कथा कछ एक ह कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीर ा ग ग त पैह ह सही॥3॥
भावाथ:-भयंकर शरीर वाले करोड़ यो ा य करके (बड़ी सावधानी से) नगर क चार दशाओं म (सब ओर से) रखवाली करते ह। कह ु रा स भस , मनु ,
गाय , गदह और बकर को खा रह ह। तुलसीदास ने इनक कथा इसी लए कु छ थोड़ी सी कही ह क ये न य ही ी रामचं जी के बाण पी तीथ म शरीर को
ागकर परमग त पावगे॥3॥
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11/11/2019 स ूण सुंदरका अ ाय Sundarkand Complete Chapter Hindi हदी – HariBhakt | History, Facts, Awareness of Hinduism
दोहा : Get latest articles and news of your
पुर रखवार द ख ब क प मन क बचार।
अ त लघु प धर न सin नगर
choice yourकर पइसार॥3॥
inbox.
भावाथ:-नगर के ब सं क रखवाल को दखकर हनुमान्जी ने मन म वचार कया क अ ंत छोटा प ध ँ और रात के समय नगर म वेश क ँ ॥3॥
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चौपाई :
मसक समान प कSUBSCRIBE!
प धरी। लंक ह चलेउ सु म र नरहरी॥
नाम लं कनी एक न सचरी। सो कह चले स मो ह नदरी॥1॥
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भावाथ:-हनुमान्जी म ड़ के समान (छोटा सा) प धारण कर नर प से लीला करने वाले भगवान् ी रामचं जी का रण करके लंका को चले (लंका के ार
पर) लं कनी नाम क एक रा सी रहती थी। वह बोली- मेरा नरादर करके ( बना मुझसे पूछ) कहाँ चला जा रहा ह?॥1॥
जाने ह नहमरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ ल ग चोरा॥
मु ठका एक महा क प हनी। धर बमत धरन ढनमनी॥2॥
भावाथ:-ह मूख! तूने मेरा भेद नह जाना जहाँ तक ( जतने) चोर ह, वे सब मेर आहार ह। महाक प हनुमान्जी ने उसे एक घूँसा मारा, जससे वह खून क उलटी करती
ई पृ ी पर ुढक पड़ी॥2॥
पु न संभा र उठी सो लंका। जो र पा न कर बनय ससंका॥
जब रावन ह बर दी ा। चलत बरंच कहा मो ह ची ा॥3॥
भावाथ:-वह लं कनी फर अपने को संभालकर उठी और डर के मार हाथ जोड़कर वनती करने लगी। (वह बोली-) रावण को जब ाजी ने वर दया था, तब चलते
समय उ ने मुझे रा स के वनाश क यह पहचान बता दी थी क-॥3॥
बकल हो स त क प क मार। तब जानेसु न सचर संघार॥
तात मोर अ त पु ब ता। दखेउँ नयन राम कर ू ता॥4॥
भावाथ:-जब तू बंदर के मारने से ाकु ल हो जाए, तब तू रा स का संहार आ जान लेना। ह तात! मेर बड़ पु ह, जो म ी रामचं जी के ू त (आप) को ने से
दख पाई॥4॥
दोहा :
तात ग अपबग सुख ध रअ तुला एक अंग।
तूल न ता ह सकल म ल जो सुख लव सतसंग॥4॥
भावाथ:-ह तात! ग और मो के सब सुख को तराजू के एक पलड़ म रखा जाए, तो भी वे सब मलकर ( ू सर पलड़ पर रखे ए) उस सुख के बराबर नह हो सकते,
जो लव ( ण) मा के स ंग से होता ह॥4॥
चौपाई :
ब स नगर क जे सब काजा। दयँ रा ख कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रपु कर ह मताई। गोपद सधु अनल सतलाई॥1॥
भावाथ:-अयो ापुरी के राजा ी रघुनाथजी को दय म रखे ए नगर म वेश करके सब काम क जए। उसके लए वष अमृत हो जाता ह, श ु म ता करने लगते
ह, समु गाय के खुर के बराबर हो जाता ह, अ म शीतलता आ जाती ह॥1॥
ग ड़ सुमे रनु सम ताही। राम कृ पा क र चतवा जाही॥
अ त लघु प धरउ हनुमाना। पैठा नगर सु म र भगवाना॥2॥
भावाथ:-और ह ग ड़जी! सुमे पवत उसके लए रज के समान हो जाता ह, जसे ी रामचं जी ने एक बार कृ पा करके दख लया। तब हनुमान्जी ने ब त ही छोटा
प धारण कया और भगवान् का रण करके नगर म वेश कया॥2॥
मं दर मं दर त क र सोधा। दखे जहँ तहँ अग नत जोधा॥
गयउ दसानन मं दर माह । अ त ब च क ह जात सो नाह ॥3॥
भावाथ:-उ ने एक-एक ( ेक) महल क खोज क । जहाँ-तहाँ असं यो ा दखे। फर वे रावण के महल म गए। वह अ ंत व च था, जसका वणन नह हो
सकता॥3॥
सयन कएँ दखा क प तेही। मं दर म ँ न दी ख बैदही॥
भवन एक पु न दीख सुहावा। ह र मं दर तहँ भ बनावा॥4॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने उस (रावण) को शयन कए दखा, परंतु महल म जानक जी नह दखाई द । फर एक सुंदर महल दखाई दया। वहाँ (उसम) भगवान् का एक
अलग मं दर बना आ था॥4॥
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दोहा :
रामायुध अं कत गृह सोभा बर न न जाइ।
नव तुल सका बृंद तहँ द ख हरष क पराई॥5॥
भावाथ:-वह महल ी रामजी के आयुध (धनुष-बाण) के च से अं कत था, उसक शोभा वणन नह क जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृ -समूह को
दखकर क पराज ी हनुमान्जी ह षत ए॥5॥
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चौपाई :
लंका न सचर नकर नवासा। इहाँ कहाँ स न कर बासा॥
मन म ँ तरक कर क प लागा। तेह समय बभीषनु जागा॥1॥
भावाथ:-लंका तो रा स के समूह का नवास ान ह। यहाँ स न (साधु पु ष) का नवास कहाँ? हनुमान्जी मन म इस कार तक करने लगे। उसी समय
वभीषणजी जागे॥1॥
राम राम ते ह सु मरन क ा। दयँ हरष क प स न ची ा॥
ए ह सन स ठ क रहउँ प हचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥
भावाथ:-उ ने ( वभीषण ने) राम नाम का रण (उ ारण) कया। हनमान्जी ने उ स न जाना और दय म ह षत ए। (हनुमान्जी ने वचार कया क) इनसे
हठ करके (अपनी ओर से ही) प रचय क ँ गा, क साधु से काय क हा न नह होती। ( तु लाभ ही होता ह)॥2॥
ब प ध र बचन सुनाए। सुनत बभीषन उ ठ तहँ आए॥
क र नाम पूँछी कु सलाई। ब कह नज कथा बुझाई॥3॥
भावाथ:- ा ण का प धरकर हनुमान्जी ने उ वचन सुनाए (पुकारा)। सुनते ही वभीषणजी उठकर वहाँ आए। णाम करके कु शल पूछी (और कहा क) ह
ा णदव! अपनी कथा समझाकर क हए॥3॥
क तु ह र दास महँ कोई। मोर दय ी त अ त होई॥
क तु रामु दीन अनुरागी। आय मो ह करन बड़भागी॥4॥
भावाथ:- ा आप ह रभ म से कोई ह? क आपको दखकर मेर दय म अ ंत ेम उमड़ रहा ह। अथवा ा आप दीन से ेम करने वाले यं ी रामजी ही
ह जो मुझे बड़भागी बनाने (घर-बैठ दशन दकर कृ ताथ करने) आए ह?॥4॥
दोहा :
तब हनुमंत कही सब राम कथा नज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सु म र गुन ाम॥6॥
भावाथ:-तब हनुमान्जी ने ी रामचं जी क सारी कथा कहकर अपना नाम बताया। सुनते ही दोन के शरीर पुल कत हो गए और ी रामजी के गुण समूह का
रण करके दोन के मन ( ेम और आनंद म) म हो गए॥6॥
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चौपाई Get
:
सुन पवनसुlatest
त रह articles
न हमारी।andजnews
म दसन म ँ जीभ बचारी॥
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तात कब ँ मो ह जा न अनाथा। क रह ह कृ पा भानुकुल नाथा॥1॥
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भावाथ:-( वभीषणजी ने कहा-) ह पवनपु ! मेरी रहनी सुनो। म यहाँ वैसे ही रहता ँ जैसे दाँत के बीच म बेचारी जीभ। ह तात! मुझे अनाथ जानकर सूयकु ल के नाथ
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भावाथ:-मेरा तामसी (रा स) शरीर होने से साधन तो कु छ बनता नह और न मन म ी रामचं जी के चरणकमल म ेम ही ह, परंतु ह हनुमान्! अब मुझे व ास हो
गया क ी रामजी क मुझ पर कृ पा ह, क ह र क कृ पा के बना संत नह मलते॥2॥
ज रघुबीर अनु ह क ा। तौ तु मो ह दरसु ह ठ दी ा॥
सुन बभीषन भु कै रीती। कर ह सदा सेवक पर ी त॥3॥
भावाथ:-जब ी रघुवीर ने कृ पा क ह, तभी तो आपने मुझे हठ करके (अपनी ओर से) दशन दए ह। (हनुमान्जी ने कहा-) ह वभीषणजी! सु नए, भु क यही री त ह
क वे सेवक पर सदा ही ेम कया करते ह॥3॥
कह कवन म परम कु लीना। क प चंचल सबह ब ध हीना॥
ात लेइ जो नाम हमारा। ते ह दन ता ह न मलै अहारा॥4॥
भावाथ:-भला क हए, म ही कौन बड़ा कु लीन ँ ? (जा त का) चंचल वानर ँ और सब कार से नीच ँ , ातःकाल जो हम लोग (बंदर ) का नाम ले ले तो उस दन उसे
भोजन न मले॥4॥
दोहा :
अस म अधम सखा सुनु मो पर रघुबीर।
क कृ पा सु म र गुन भर बलोचन नीर॥7॥
भावाथ:-ह सखा! सु नए, म ऐसा अधम ँ , पर ी रामचं जी ने तो मुझ पर भी कृ पा ही क ह। भगवान् के गुण का रण करके हनुमान्जी के दोन ने म ( ेमा ुओ ं
का) जल भर आया॥7॥
चौपाई :
जानत ँ अस ा म बसारी। फर ह ते काह न हो ह ुखारी॥
ए ह ब ध कहत राम गुन ामा। पावा अ नबा ब ामा॥1॥
भावाथ:-जो जानते ए भी ऐसे ामी ( ी रघुनाथजी) को भुलाकर ( वषय के पीछ) भटकते फरते ह, वे ुःखी न ह ? इस कार ी रामजी के गुण समूह को
कहते ए उ ने अ नवचनीय (परम) शां त ा क ॥1॥
पु न सब कथा बभीषन कही। जे ह ब ध जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु ाता। दखी चहउँ जानक माता॥2॥
भावाथ:- फर वभीषणजी ने, ी जानक जी जस कार वहाँ (लंका म) रहती थ , वह सब कथा कही। तब हनुमान्जी ने कहा- ह भाई सुनो, म जानक माता को
दखता चाहता ँ ॥2॥
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बभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बदा कराई॥
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क र सोइ प गयउ पु नin तहवाँ
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बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥
भावाथ:- वभीषणजी ने (माता के दशन क ) सब यु याँ (उपाय) कह सुना । तब हनुमान्जी वदा लेकर चले। फर वही (पहले का मसक सरीखा) प धरकर वहाँ
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चौपाई :
त प व महँ रहा लुकाई। करइ बचार कर का भाई॥
ते ह अवसर रावनु तहँ आवा। संग ना र ब कएँ बनावा॥1॥
भावाथ:-हनुमान्जी वृ के प म छप रह और वचार करने लगे क ह भाई! ा क ँ (इनका ुःख कै से ू र क ँ )? उसी समय ब त सी य को साथ लए सज-
धजकर रावण वहाँ आया॥1॥
ब ब ध खल सीत ह समुझावा। साम दान भय भेद दखावा॥
कह रावनु सुनु सुमु ख सयानी। मंदोदरी आ द सब रानी॥2॥
भावाथ:-उस ु ने सीताजी को ब त कार से समझाया। साम, दान, भय और भेद दखलाया। रावण ने कहा- ह सुमु ख! ह सयानी! सुनो! मंदोदरी आ द सब
रा नय को-॥2॥
तव अनुचर करउँ पन मोरा। एक बार बलोकु मम ओरा॥
तृन ध र ओट कह त बैदही। सु म र अवधप त परम सनेही॥3॥
भावाथ:-म तु ारी दासी बना ू ँगा, यह मेरा ण ह। तुम एक बार मेरी ओर दखो तो सही! अपने परम ेही कोसलाधीश ी रामचं जी का रण करके जानक जी
तनके क आड़ (परदा) करके कहने लग -॥3॥
सुनु दसमुख ख ोत कासा। कब ँ क न लनी करइ बकासा॥
अस मन समु ु कह त जानक । खल सु ध न ह रघुबीर बान क ॥4॥
भावाथ:-ह दशमुख! सुन, जुगनू के काश से कभी कम लनी खल सकती ह? जानक जी फर कहती ह- तू (अपने लए भी) ऐसा ही मन म समझ ले। र ु ! तुझे ी
रघुवीर के बाण का आभास नह ह॥4॥
सठ सून ह र आने ह मोही। अधम नल लाज न ह तोही॥5॥
भावाथ:-र पापी! तू मुझे सूने म हर लाया ह। र अधम! नल ! तुझे ल ा नह आती?॥5॥
दोहा :
आपु ह सु न ख ोत सम राम ह भानु समान।
प ष बचन सु न का ढ़ अ स बोला अ त ख सआन॥9॥
भावाथ:-अपने को जुगनू के समान और रामचं जी को सूय के समान सुनकर और सीताजी के कठोर वचन को सुनकर रावण तलवार नकालकर बड़ गु े म आकर
बोला-॥9॥
चौपाई :
सीता त मम कृ त अपमाना। क टहउँ तव सर क ठन कृ पाना॥
ना ह त सप द मानु मम बानी। सुमु ख हो त न त जीवन हानी॥1॥
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11/11/2019 स ूण सुंदरका अ ाय Sundarkand Complete Chapter Hindi हदी – HariBhakt | History, Facts, Awareness of Hinduism
भावाथGet
:-सीता! तूने मेरा अपनाम कया ह। म तेरा सर इस कठोर कृ पाण से काट डालूँगा। नह तो (अब भी) ज ी मेरी बात मान ले। ह सुमु ख! नह तो जीवन से
हाथ धोना पड़गा॥ 1॥
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दोहा :
जहँ तहँ ग सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दवस बीत मो ह मा र ह न सचर पोच॥11॥
भावाथ:-तब (इसके बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली ग । सीताजी मन म सोच करने लग क एक महीना बीत जाने पर नीच रा स रावण मुझे मारगा॥11॥
चौपाई :
जटा सन बोल कर जोरी। मातु बप त सं ग न त मोरी॥
तज दह क बे ग उपाई। ुसह बर अब न ह स ह जाई॥1॥
भावाथ:-सीताजी हाथ जोड़कर जटा से बोल - ह माता! तू मेरी वप क सं गनी ह। ज ी कोई ऐसा उपाय कर जससे म शरीर छोड़ सकूँ । वरह अस हो चला
ह, अब यह सहा नह जाता॥1॥
आ न काठ रचु चता बनाई। मातु अनल पु न द ह लगाई॥
स कर ह मम ी त सयानी। सुनै को वन सूल सम बानी॥2॥
भावाथ:-काठ लाकर चता बनाकर सजा द। ह माता! फर उसम आग लगा द। ह सयानी! तू मेरी ी त को स कर द। रावण क शूल के समान ुःख दने वाली
वाणी कान से कौन सुन?े ॥2॥
सुनत बचन पद ग ह समुझाए स। भु ताप बल सुजसु सुनाए स॥
न स न अनल मल सुनु सुकुमारी। अस क ह सो नज भवन सधारी।3॥
भावाथ:-सीताजी के वचन सुनकर जटा ने चरण पकड़कर उ समझाया और भु का ताप, बल और सुयश सुनाया। (उसने कहा-) ह सुकुमारी! सुनो रा के
समय आग नह मलेगी। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई॥3॥
कह सीता ब ध भा तकू ला। म ल ह न पावक म ट ह न सूला॥
द खअत गट गगन अंगारा। अव न न आवत एकउ तारा॥4॥
भावाथ:-सीताजी (मन ही मन) कहने लग - ( ा क ँ ) वधाता ही वपरीत हो गया। न आग मलेगी, न पीड़ा मटगी। आकाश म अंगार कट दखाई द रह ह, पर
पृ ी पर एक भी तारा नह आता॥4॥
पावकमय स स वत न आगी। मान ँ मो ह जा न हतभागी॥
सुन ह बनय मम बटप असोका। स नाम क ह मम सोका॥5॥
भावाथ:-चं मा अ मय ह, कतु वह भी मानो मुझे हतभा गनी जानकर आग नह बरसाता। ह अशोक वृ ! मेरी वनती सुन। मेरा शोक हर ले और अपना (अशोक)
नाम स कर॥5॥
नूतन कसलय अनल समाना। द ह अ ग न ज न कर ह नदाना॥
द ख परम बरहाकु ल सीता। सो छन क प ह कलप सम बीता॥6॥
भावाथ:-तेर नए-नए कोमल प े अ के समान ह। अ द, वरह रोग का अंत मत कर (अथात् वरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक न प ँ चा) सीताजी को वरह से
परम ाकु ल दखकर वह ण हनुमान्जी को क के समान बीता॥6॥
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सोरठा :
क प क र दयँ बचार दी मु का डा र तब।
जनु असोक अंगार दी हर ष उ ठ कर गहउ॥12॥
भावाथ:-तब हनुमान्जी ने हदय म वचार कर (सीताजी के सामने) अँगूठी डाल दी, मानो अशोक ने अंगारा द दया। (यह समझकर) सीताजी ने ह षत होकर उठकर
उसे हाथ म ले लया॥12॥
चौपाई :
तब दखी मु का मनोहर। राम नाम अं कत अ त सुंदर॥
च कत चतव मुदरी प हचानी। हरष बषाद दयँ अकु लानी॥1॥
भावाथ:-तब उ ने राम-नाम से अं कत अ ंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी दखी। अँगूठी को पहचानकर सीताजी आ यच कत होकर उसे दखने लग और हष तथा
वषाद से दय म अकु ला उठ ॥1॥
जी त को सकइ अजय रघुराई। माया त अ स र च न ह जाई॥
सीता मन बचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥2॥
भावाथ:-(वे सोचने लग -) ी रघुनाथजी तो सवथा अजेय ह, उ कौन जीत सकता ह? और माया से ऐसी (माया के उपादान से सवथा र हत द , च य) अँगूठी
बनाई नह जा सकती। सीताजी मन म अनेक कार के वचार कर रही थ । इसी समय हनुमान्जी मधुर वचन बोले-॥2॥
रामचं गुन बरन लागा। सुनत ह सीता कर ुख भागा॥
लाग सुन वन मन लाई। आ द त सब कथा सुनाई॥3॥
भावाथ:-वे ी रामचं जी के गुण का वणन करने लगे, ( जनके ) सुनते ही सीताजी का ुःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उ सुनने लग । हनुमान्जी ने आ द
से लेकर अब तक क सारी कथा कह सुनाई॥3॥
वनामृत जे ह कथा सुहाई। कही सो गट हो त कन भाई॥
तब हनुमंत नकट च ल गयऊ। फ र बैठ मन बसमय भयऊ ॥4॥
भावाथ:-(सीताजी बोल -) जसने कान के लए अमृत प यह सुंदर कथा कही, वह ह भाई! कट नह होता? तब हनुमान्जी पास चले गए। उ दखकर
सीताजी फरकर (मुख फे रकर) बैठ ग ? उनके मन म आ य आ॥4॥
राम ू त म मातु जानक । स सपथ क ना नधान क ॥
यह मु का मातु म आनी। दी राम तु कहँ स हदानी॥5॥
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) ह माता जानक म ी रामजी का ू त ँ । क णा नधान क स ी शपथ करता ँ , ह माता! यह अँगूठी म ही लाया ँ । ी रामजी ने
मुझे आपके लए यह स हदानी ( नशानी या प हचान) दी ह॥5॥
नर बानर ह संग क कै स। कही कथा भइ संग त जैस॥6॥
भावाथ:-(सीताजी ने पूछा-) नर और वानर का संग कहो कै से आ? तब हनुमानजी ने जैसे संग आ था, वह सब कथा कही॥6॥
दोहा :
क प के बचन स ेम सु न उपजा मन ब ास
जाना मन म बचन यह कृ पा सधु कर दास॥13॥
भावाथ:-हनुमान्जी के ेमय वचन सुनकर सीताजी के मन म व ास उ हो गया, उ ने जान लया क यह मन, वचन और कम से कृ पासागर ी रघुनाथजी
का दास ह॥13॥
चौपाई :
ह रजन जा न ी त अ त गाढ़ी। सजल नयन पुलकाव ल बाढ़ी॥
बूड़त बरह जल ध हनुमाना। भय तात मो क ँ जलजाना॥1॥
भावाथ:-भगवान का जन (सेवक) जानकर अ ंत गाढ़ी ी त हो गई। ने म ( ेमा ुओ ं का) जल भर आया और शरीर अ ंत पुल कत हो गया (सीताजी ने कहा-)ह
तात हनुमान्! वरहसागर म डबती ई मुझको तुम जहाज ए॥1॥
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अब क Getकु सल जाउँ ब लहारी। अनुज ofस your
हत सुख भवन खरारी॥
कोमल चत latest
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रघुराई।and
क पnews
के ह हतु धरी नठराई॥2॥
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भावाथ:-म ब लहारी जातीEmailँ , अब छोट भाई ल णजी स हत खर के श ु सुखधाम भु का कु शल-मंगल कहो। ी रघुनाथजी तो कोमल दय और कृ पालु ह। फर
ह हनुमान्! उ नेEnterकसYourकारण यह न ु रता धारण कर ली ह?॥2॥
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सहज बा न सेवक सुखदायक। कब ँ क सुर त करत रघुनायक॥
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मम सीतल ताता। होइह ह नर ख ाम मृ ु गाता॥3॥
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भावाथ:-सेवक को सुख दना उनक ाभा वक बान ह। वे ी रघुनाथजी ा कभी मेरी भी याद करते ह? ह तात! ा कभी उनके कोमल साँवले अंग को दखकर
मेर ने शीतल ह गे?॥3॥
बचनु न आव नयन भर बारी। अहह नाथ ह नपट बसारी॥
द ख परम बरहाकु ल सीता। बोला क प मृ ु बचन बनीता॥4॥
भावाथ:-(मुँह से) वचन नह नकलता, ने म ( वरह के आँ सुओ ं का) जल भर आया। (बड़ ुःख से वे बोल -) हा नाथ! आपने मुझे बलकु ल ही भुला दया! सीताजी
को वरह से परम ाकु ल दखकर हनुमान्जी कोमल और वनीत वचन बोले-॥4॥
मातु कु सल भु अनुज समेता। तव ुख ुखी सुकृपा नके ता॥
ज न जननी मानह जयँ ऊना। तु ते ेमु राम क ू ना॥5॥
भावाथ:-ह माता! सुंदर कृ पा के धाम भु भाई ल णजी के स हत (शरीर से) कु शल ह, परंतु आपके ुःख से ुःखी ह। ह माता! मन म ा न न मा नए (मन छोटा
करके ुःख न क जए)। ी रामचं जी के दय म आपसे ू ना ेम ह॥5॥
दोहा :
रघुप त कर संदसु अब सुनु जननी ध र धीर।
अस क ह क प गदगद भयउ भर बलोचन नीर॥14॥
भावाथ:-ह माता! अब धीरज धरकर ी रघुनाथजी का संदश सु नए। ऐसा कहकर हनुमान्जी ेम से ग द हो गए। उनके ने म ( ेमा ुओ ं का) जल भर आया॥
14॥
चौपाई :
कहउ राम बयोग तव सीता। मो क ँ सकल भए बपरीता॥
नव त कसलय मन ँ कृ सानू। काल नसा सम न स स स भानू॥1॥
भावाथ:-(हनुमान्जी बोले-) ी रामचं जी ने कहा ह क ह सीते! तु ार वयोग म मेर लए सभी पदाथ तकू ल हो गए ह। वृ के नए-नए कोमल प े मानो अ के
समान, रा कालरा के समान, चं मा सूय के समान॥1॥
कु बलय ब पन कुं त बन स रसा। बा रद तपत तेल जनु ब रसा॥
जे हत रह करत तेइ पीरा। उरग ास सम बध समीरा॥2॥
भावाथ:-और कमल के वन भाल के वन के समान हो गए ह। मेघ मानो खौलता आ तेल बरसाते ह। जो हत करने वाले थे, वे ही अब पीड़ा दने लगे ह। वध
(शीतल, मंद, सुगंध) वायु साँप के ास के समान (जहरीली और गरम) हो गई ह॥2॥
कह त कछ ुख घ ट होई। का ह कह यह जान न कोई॥
त ेम कर मम अ तोरा। जानत या एकु मनु मोरा॥3॥
भावाथ:-मन का ुःख कह डालने से भी कु छ घट जाता ह। पर क ँ कससे? यह ुःख कोई जानता नह । ह ये! मेर और तेर ेम का त (रह ) एक मेरा मन ही
जानता ह॥3॥
सो मनु सदा रहत तो ह पाह । जानु ी त रसु एतने ह माह ॥
भु संदसु सुनत बैदही। मगन ेम तन सु ध न ह तेही॥4॥
भावाथ:-और वह मन सदा तेर ही पास रहता ह। बस, मेर ेम का सार इतने म ही समझ ले। भु का संदश सुनते ही जानक जी ेम म म हो ग । उ शरीर क
सुध न रही॥4॥
कह क प दयँ धीर ध माता। सु म राम सेवक सुखदाता॥
उर आन रघुप त भुताई। सु न मम बचन तज कदराई॥5॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने कहा- ह माता! दय म धैय धारण करो और सेवक को सुख दने वाले ी रामजी का रण करो। ी रघुनाथजी क भुता को दय म लाओ
और मेर वचन सुनकर कायरता छोड़ दो॥5॥
दोहा :
न सचर नकर पतंग सम रघुप त बान कृ सानु।
जननी दयँ धीर ध जर नसाचर जानु॥15॥
भावाथ:-रा स के समूह पतंग के समान और ी रघुनाथजी के बाण अ के समान ह। ह माता! दय म धैय धारण करो और रा स को जला ही समझो॥15॥
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चौपाई Get
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ज रघुबीर होlatest
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न ह ofबलं बु रघुराई॥
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राम बान र ब उएँ जानक । तम ब थ कहँ जातुधान क ॥1॥
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भावाथ:- ी रामचं जी को य द यह ात आ होता तो वे बलंब न करते। ह जानक जी! रामबाण पी सूय के उदय होने पर रा स क सेना पी अंधकार कहाँ रह
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भावाथ:-ह माता! म आपको अभी यहाँ से लवा जाऊँ , पर ी रामचं जी क शपथ ह, मुझे भु (उन) क आ ा नह ह। (अतः) ह माता! कु छ दन और धीरज धरो।
ी रामचं जी वानर स हत यहाँ आएँ गे॥2॥
न सचर मा र तो ह लै जैह ह। त ँ पुर नारदा द जसु गैह ह॥
ह सुत क प सब तु ह समाना। जातुधान अ त भट बलवाना॥3॥
भावाथ:-और रा स को मारकर आपको ले जाएँ गे। नारद आ द (ऋ ष-मु न) तीन लोक म उनका यश गाएँ गे। (सीताजी ने कहा-) ह पु ! सब वानर तु ार ही
समान (न -न से) ह गे, रा स तो बड़ बलवान, यो ा ह॥3॥
मोर दय परम संदहा। सु न क प गट क नज दहा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अ तबल बीरा॥4॥
भावाथ:-अतः मेर दय म बड़ा भारी संदह होता ह ( क तुम जैसे बंदर रा स को कै से जीतगे!)। यह सुनकर हनुमान्जी ने अपना शरीर कट कया। सोने के पवत
(सुमे ) के आकार का (अ ंत वशाल) शरीर था, जो यु म श ुओ ं के दय म भय उ करने वाला, अ ंत बलवान् और वीर था॥4॥
सीता मन भरोस तब भयऊ। पु न लघु प पवनसुत लयऊ॥5॥
भावाथ:-तब (उसे दखकर) सीताजी के मन म व ास आ। हनुमान्जी ने फर छोटा प धारण कर लया॥5॥
दोहा :
सुनु माता साखामृग न ह बल बु बसाल।
भु ताप त ग ड़ ह खाइ परम लघु ाल॥16॥
भावाथ:-ह माता! सुनो, वानर म ब त बल-बु नह होती, परंतु भु के ताप से ब त छोटा सप भी ग ड़ को खा सकता ह। (अ ंत नबल भी महान् बलवान् को
मार सकता ह)॥16॥
चौपाई :
मन संतोष सुनत क प बानी। भग त ताप तेज बल सानी॥
आ सष दी राम य जाना। हो तात बल सील नधाना॥1॥
भावाथ:-भ , ताप, तेज और बल से सनी ई हनुमान्जी क वाणी सुनकर सीताजी के मन म संतोष आ। उ ने ी रामजी के य जानकर हनुमान्जी को
आशीवाद दया क ह तात! तुम बल और शील के नधान होओ॥1॥
अजर अमर गुन न ध सुत हो । कर ँ ब त रघुनायक छो ॥
कर ँ कृ पा भु अस सु न काना। नभर ेम मगन हनुमाना॥2॥
भावाथ:-ह पु ! तुम अजर (बुढ़ापे से र हत), अमर और गुण के खजाने होओ। ी रघुनाथजी तुम पर ब त कृ पा कर। ‘ भु कृ पा कर’ ऐसा कान से सुनते ही
हनुमान्जी पूण ेम म म हो गए॥2॥
बार बार नाए स पद सीसा। बोला बचन जो र कर क सा॥
अब कृ तकृ भयउँ म माता। आ सष तव अमोघ ब ाता॥3॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने बार-बार सीताजी के चरण म सर नवाया और फर हाथ जोड़कर कहा- ह माता! अब म कृ ताथ हो गया। आपका आशीवाद अमोघ (अचूक)
ह, यह बात स ह॥3॥
सुन मातु मो ह अ तसय भूखा। ला ग द ख सुंदर फल खा॥
सुनु सुत कर ह ब पन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥4॥
भावाथ:-ह माता! सुनो, सुंदर फल वाले वृ को दखकर मुझे बड़ी ही भूख लग आई ह। (सीताजी ने कहा-) ह बेटा! सुनो, बड़ भारी यो ा रा स इस वन क रखवाली
करते ह॥4॥
त कर भय माता मो ह नाह । ज तु सुख मान मन माह ॥5॥
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) ह माता! य द आप मन म सुख मान ( स होकर) आ ा द तो मुझे उनका भय तो बलकु ल नह ह॥5॥
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दोहा :
द ख बु बल नपुन क प कहउ जानक जा ।
रघुप त चरन दयँ ध र तात मधुर फल खा ॥17॥
भावाथ:-हनुमा ी को बु और बल म नपुण दखकर जानक जी ने कहा- जाओ। ह तात! ी रघुनाथजी के चरण को दय म धारण करके मीठ फल खाओ॥17॥
चौपाई :
चलेउ नाइ स पैठउ बागा। फल खाए स त तोर लागा॥
रह तहाँ ब भट रखवार। कछ मार स कछ जाइ पुकार॥1॥
भावाथ:-वे सीताजी को सर नवाकर चले और बाग म घुस गए। फल खाए और वृ को तोड़ने लगे। वहाँ ब त से यो ा रखवाले थे। उनम से कु छ को मार डाला
और कु छ ने जाकर रावण से पुकार क -॥1॥
नाथ एक आवा क प भारी। ते ह असोक बा टका उजारी॥
खाए स फल अ बटप उपार। र क म द म द म ह डार॥2॥
भावाथ:-(और कहा-) ह नाथ! एक बड़ा भारी बंदर आया ह। उसने अशोक वा टका उजाड़ डाली। फल खाए, वृ को उखाड़ डाला और रखवाल को मसल-
मसलकर जमीन पर डाल दया॥2॥
सु न रावन पठए भट नाना। त ह द ख गजउ हनुमाना॥
सब रजनीचर क प संघार। गए पुकारत कछ अधमार॥3॥
भावाथ:-यह सुनकर रावण ने ब त से यो ा भेजे। उ दखकर हनुमा ी ने गजना क । हनुमा ी ने सब रा स को मार डाला, कु छ जो अधमर थे, च ाते ए
गए॥3॥
पु न पठयउ ते ह अ कु मारा। चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत द ख बटप ग ह तजा। ता ह नपा त महाधु न गजा॥4॥
भावाथ:- फर रावण ने अ यकु मार को भेजा। वह असं े यो ाओं को साथ लेकर चला। उसे आते दखकर हनुमा ी ने एक वृ (हाथ म) लेकर ललकारा
और उसे मारकर महा न (बड़ जोर) से गजना क ॥4॥
दोहा :
कछ मार स कछ मद स कछ मलए स ध र धू र।
कछ पु न जाइ पुकार भु मकट बल भू र॥18॥
भावाथ:-उ ने सेना म से कु छ को मार डाला और कु छ को मसल डाला और कु छ को पकड़-पकड़कर धूल म मला दया। कु छ ने फर जाकर पुकार क क ह भु!
बंदर ब त ही बलवान् ह॥18॥
चौपाई :
सु न सुत बध लंकेस रसाना। पठए स मेघनाद बलवाना॥
मार स ज न सुत बाँधेसु ताही। द खअ क प ह कहाँ कर आही॥1॥
भावाथ:-पु का वध सुनकर रावण ो धत हो उठा और उसने (अपने जेठ पु ) बलवान् मेघनाद को भेजा। (उससे कहा क-) ह पु ! मारना नह उसे बाँध लाना। उस
बंदर को दखा जाए क कहाँ का ह॥1॥
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दोहा :
क प ह बलो क दसानन बहसा क ह ुबाद।
सुत बध सुर त क पु न उपजा दयँ बसाद॥20॥
भावाथ:-हनुमान्जी को दखकर रावण ुवचन कहता आ खूब हँ सा। फर पु वध का रण कया तो उसके दय म वषाद उ हो गया॥20॥
चौपाई :
कह लंकेस कवन त क सा। के ह क बल घाले ह बन खीसा॥
क ध वन सुने ह न ह मोही। दखउँ अ त असंक सठ तोही॥1॥
भावाथ:-लंकाप त रावण ने कहा- र वानर! तू कौन ह? कसके बल पर तूने वन को उजाड़कर न कर डाला? ा तूने कभी मुझे (मेरा नाम और यश) कान से नह
सुना? र शठ! म तुझे अ ंत नःशंख दख रहा ँ ॥1॥
मार न सचर के ह अपराधा। क सठ तो ह न ान कइ बाधा॥
सुनु रावन ांड नकाया। पाइ जासु बल बरच त माया॥2॥
भावाथ:-तूने कस अपराध से रा स को मारा? र मूख! बता, ा तुझे ाण जाने का भय नह ह? (हनुमान्जी ने कहा-) ह रावण! सुन, जनका बल पाकर माया
संपूण ांड के समूह क रचना करती ह,॥2॥
जाक बल बरं च ह र ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत ग र कानन॥3॥
भावाथ:- जनके बल से ह दशशीश! ा, व ,ु महश ( मशः) सृ का सृजन, पालन और संहार करते ह, जनके बल से सह मुख (फण ) वाले शेषजी पवत
और वनस हत सम ांड को सर पर धारण करते ह,॥3॥
धरइ जो ब बध दह सुर ाता। तु से सठ सखावनु दाता॥
हर कोदंड क ठन जे ह भंजा। ते ह समेत नृप दल मद गंजा॥4॥
भावाथ:-जो दवताओं क र ा के लए नाना कार क दह धारण करते ह और जो तु ार जैसे मूख को श ा दने वाले ह, ज ने शवजी के कठोर धनुष को तोड़
डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गव चूण कर दया॥4॥
खर ू षन सरा अ बाली। बधे सकल अतु लत बलसाली॥5॥
भावाथ:- ज ने खर, ू षण, शरा और बा ल को मार डाला, जो सब के सब अतुलनीय बलवान् थे,॥5॥
दोहा :
जाके बल लवलेस त जते चराचर झा र।
तास ू त म जा क र ह र आने य ना र॥21॥
भावाथ:- जनके लेशमा बल से तुमने सम चराचर जगत् को जीत लया और जनक य प ी को तुम (चोरी से) हर लाए हो, म उ का ू त ँ ॥21॥
चौपाई :
जानउँ म तु ा र भुताई। सहसबा सन परी लराई॥
समर बा ल सन क र जसु पावा। सु न क प बचन बह स बहरावा॥1॥
भावाथ:-म तु ारी भुता को खूब जानता ँ सह बा से तु ारी लड़ाई ई थी और बा ल से यु करके तुमने यश ा कया था। हनुमान्जी के (मा मक) वचन
सुनकर रावण ने हँ सकर बात टाल दी॥1॥
खायउँ फल भु लागी भूँखा। क प सुभाव त तोरउँ खा॥
सब क दह परम य ामी। मार ह मो ह कु मारग गामी॥2॥
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भावाथGet
:-ह (रा स के ) ामी मुझे भूख लगी थी, (इस लए) मने फल खाए और वानर भाव के कारण वृ तोड़। ह ( नशाचर के ) मा लक! दह सबको परम य
ह। कु माग पर चलने वाले ( ु ) रा स जब मुझे मारने लगे॥2
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ज मो ह मारा ते मYourमार।Email
ते हAddress
पर बाँधेउँ तनयँ तु ार॥
मो ह न कछ बाँधEnter
े कइ लाजा। क चहउँ नज भु कर काजा॥3॥
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भावाथ:-तब ज ने मुझे मारा, उनको मने भी मारा। उस पर तु ार पु ने मुझको बाँध लया ( कतु), मुझे अपने बाँधे जाने क कु छ भी ल ा नह ह। म तो अपने
भु का कायAlsoकरना चाहता ँ ॥3॥
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सु न क प बचनEnter
ब त ख Email
सआना। बे ग न हर मूढ़ कर ाना॥
सुनत नसाचर मारन Your
धाए। स चव स हत बभीषनु आए॥3॥
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भावाथ:-हनुमान्जी के वचन सुनकर वह ब त ही कु पत हो गया। (और बोला-) अर! इस मूख का ाण शी ही नह हर लेते? सुनते ही रा स उ मारने दौड़
उसी समय मंAlsoयgetकेfreeसाथ वभीषणजी वहाँ आ प ँ चे॥3॥
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सुंदरका : लं कादहन
(https://haribhakt.com/wp-content/uploads/2015/07/HanumanJi_Burnt_Lanka.jpg)
दोहा :
क प क ममता पूँछ पर सब ह कहउँ समुझाइ।
तेल बो र पट बाँ ध पु न पावक द लगाइ॥24॥
भावाथ:-म सबको समझाकर कहता ँ क बंदर क ममता पूँछ पर होती ह। अतः तेल म कपड़ा डबोकर उसे इसक पूँछ म बाँधकर फर आग लगा दो॥24॥
चौपाई :
पूँछहीन बानर तहँ जाइ ह। तब सठ नज नाथ ह लइ आइ ह॥
ज कै क स ब त बड़ाई। दखउ म त कै भुताई॥1॥
भावाथ:-जब बना पूँछ का यह बंदर वहाँ (अपने ामी के पास) जाएगा, तब यह मूख अपने मा लक को साथ ले आएगा। जनक इसने ब त बड़ाई क ह, म जरा
उनक भुता (साम ) तो दखूँ!॥1॥
बचन सुनत क प मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद म जाना॥
जातुधान सु न रावन बचना। लागे रच मूढ़ सोइ रचना॥2॥
भावाथ:-यह वचन सुनते ही हनुमान्जी मन म मु ु राए (और मन ही मन बोले क) म जान गया, सर तीजी (इसे ऐसी बु दने म) सहायक ई ह। रावण के वचन
सुनकर मूख रा स वही (पूँछ म आग लगाने क ) तैयारी करने लगे॥2॥
रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ क क प खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी। मार ह चरन कर ह ब हाँसी॥3॥
भावाथ:-(पूँछ के लपेटने म इतना कपड़ा और घी-तेल लगा क) नगर म कपड़ा, घी और तेल नह रह गया। हनुमान्जी ने ऐसा खेल कया क पूँछ बढ़ गई (लंबी हो
गई)। नगरवासी लोग तमाशा दखने आए। वे हनुमान्जी को पैर से ठोकर मारते ह और उनक हँ सी करते ह॥3॥
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बाज हGet
ढोल द ह सब तारी। नगर फे र पु न पूँछ जारी॥
पावक जरतlatest
द ख हनु मंता। भयउ परम लघु प तुरतं ा॥4॥
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भावाथ:-ढोल बजते ह, सब लोग ता लयाँ पीटते ह। हनुमान्जी को नगर म फराकर, फर पूँछ म आग लगा दी। अ को जलते ए दखकर हनुमान्जी तुरतं ही ब त
छोट प म हो गए॥ 4॥
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नबु क चढ़उ कप कनक अटार । भ सभीत नसाचर नार ॥5॥
भावाथ:-बंधAlso
न सेgetनकलकर वे सोने क अटा रय पर जा चढ़। उनको दखकर रा स क
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याँ भयभीत हो ग ॥5॥
दोहा :
ह र े रत ते ह अवसर चले म त उनचास।
अ हास क र गजा क प ब ढ़ लाग अकास॥25॥
भावाथ:-उस समय भगवान् क ेरणा से उनचास पवन चलने लगे। हनुमान्जी अ हास करके गज और बढ़कर आकाश से जा लगे॥25॥
चौपाई :
दह बसाल परम ह आई। मं दर त मं दर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बहाला। झपट लपट ब को ट कराला॥1॥
भावाथ:-दह बड़ी वशाल, परंतु ब त ही ह (फु त ली) ह। वे दौड़कर एक महल से ू सर महल पर चढ़ जाते ह। नगर जल रहा ह लोग बेहाल हो गए ह। आग क
करोड़ भयंकर लपट झपट रही ह॥1॥
तात मातु हा सु नअ पुकारा। ए ह अवसर को हम ह उबारा॥
हम जो कहा यह क प न ह होई। बानर प धर सुर कोई॥2॥
भावाथ:-हाय ब ा! हाय मैया! इस अवसर पर हम कौन बचाएगा? (चार ओर) यही पुकार सुनाई पड़ रही ह। हमने तो पहले ही कहा था क यह वानर नह ह, वानर
का प धर कोई दवता ह!॥2॥
साधु अव ा कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नग न मष एक माह । एक बभीषन कर गृह नाह ॥3॥
भावाथ:-साधु के अपमान का यह फल ह क नगर, अनाथ के नगर क तरह जल रहा ह। हनुमान्जी ने एक ही ण म सारा नगर जला डाला। एक वभीषण का घर
नह जलाया॥3॥
ताकर ू त अनल जे ह स रजा। जरा न सो ते ह कारन ग रजा॥
उल ट पल ट लंका सब जारी। कू द परा पु न सधु मझारी॥4॥
भावाथ:-( शवजी कहते ह-) ह पावती! ज ने अ को बनाया, हनुमान्जी उ के ू त ह। इसी कारण वे अ से नह जले। हनुमान्जी ने उलट-पलटकर (एक
ओर से ू सरी ओर तक) सारी लंका जला दी। फर वे समु म कू द पड़॥
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दोहा :
पूँछ बुझाइ खोइ म ध र लघु प बहो र।
जनकसुता क आग ठाढ़ भयउ कर जो र॥26॥
भावाथFree
:-पूँछ बुझाकर, थकावट ू र करके और फर छोटा सा प धारण कर हनुमान्जी ी जानक जी के सामने हाथ जोड़कर जा खड़ ए॥26॥
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चौपाई Get
:
मातु मो ह दीजे कछ ची ा। जैस रघुनायक मो ह दी ा॥
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चूड़ाम न उता रchoice
तब दयऊ। हरषinbox.
in your समेत पवनसुत लयऊ॥1॥
भावाथ:-(हनुमान्Enter
जी नेYourकहा-) ह माता! मुझे कोई च (पहचान) दी जए, जैसे ी रघुनाथजी ने मुझे दया था। तब सीताजी ने चूड़ाम ण उतारकर दी। हनुमान्जी ने
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भावाथ:-(जानक जी ने कहा-) ह तात! मेरा णाम नवेदन करना और इस कार कहना- ह भु! य प आप सब कार से पूण काम ह (आपको कसी कार क
कामना नह ह), तथा प दीन ( ुः खय ) पर दया करना आपका वरद ह (और म दीन ँ ) अतः उस वरद को याद करके , ह नाथ! मेर भारी संकट को ू र क जए॥2॥
तात स सुत कथा सनाए । बान ताप भु ह समुझाए ॥
मास दवस म ँ नाथु न आवा। तौ पु न मो ह जअत न ह पावा॥3॥
भावाथ:-ह तात! इं पु जयंत क कथा (घटना) सुनाना और भु को उनके बाण का ताप समझाना ( रण कराना)। य द महीने भर म नाथ न आए तो फर मुझे
जीती न पाएँ गे॥3॥
क क प के ह ब ध राख ाना। तु तात कहत अब जाना॥
तो ह द ख सीत ल भइ छाती। पु न मो क ँ सोइ दनु सो राती॥4॥
भावाथ:-ह हनुमान्! कहो, म कस कार ाण रखू!ँ ह तात! तुम भी अब जाने को कह रह हो। तुमको दखकर छाती ठं डी ई थी। फर मुझे वही दन और वही रात!॥
4॥
दोहा :
जनकसुत ह समुझाइ क र ब ब ध धीरजु दी ।
चरन कमल स नाइ क प गवनु राम प ह क ॥27॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने जानक जी को समझाकर ब त कार से धीरज दया और उनके चरणकमल म सर नवाकर ी रामजी के पास गमन कया॥27॥
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सुंदरका : समु के इस पार आना, सबका लौटना, मधुवन वेश, सु ीव मलन, ी राम-हनुमान्
संवाद
(https://haribhakt.com/wp-content/uploads/2015/07/Hanumanji_Sughreev_meeting.jpg)
चौपाई :
चलत महाधु न गज स भारी। गभ व ह सु न न सचर नारी॥
ना घ सधु ए ह पार ह आवा। सबद क ल कला क प सुनावा॥1॥
भावाथ:-चलते समय उ ने महा न से भारी गजन कया, जसे सुनकर रा स क य के गभ गरने लगे। समु लाँघकर वे इस पार आए और उ ने वानर को
कल कला श (हष न) सुनाया॥1॥
हरषे सब बलो क हनुमाना। नूतन ज क प तब जाना॥
मुख स तन तेज बराजा। क े स रामचं कर काजा॥2॥
भावाथ:-हनुमान्जी को दखकर सब ह षत हो गए और तब वानर ने अपना नया ज समझा। हनुमान्जी का मुख स ह और शरीर म तेज वराजमान ह, ( जससे
उ ने समझ लया क) ये ी रामचं जी का काय कर आए ह॥2॥
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मले सकलlatest
अ त भए सुखारी। तलफतofमीन पाव ज म बारी॥
चले हरGet
ष रघुनायकarticles
पासा।and
पूँछnews
त कहत नवल
your
इ तहासा॥3॥
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भावाथ:-सब हनुEnter
मान्जी से मलेAddress
और ब त ही सुखी ए, जैसे तड़पती ई मछली को जल मल गया हो। सब ह षत होकर नए-नए इ तहास (वृ ांत) पूछते- कहते ए
ी रघुनाथजी के पासYourचलेEmail
॥3॥
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तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवार जबAlso
बरजन लागे। मु हार हनत सब भागे॥4॥
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भावाथ:-तब सब लोग मधुवन के भीतर आए और अंगद क स त से सबने मधुर फल (या मधु और फल) खाए। जब रखवाले बरजने लगे, तब घूँस क मार मारते
ही सब रखवाले भाग छट॥4॥
दोहा :
जाइ पुकार ते सब बन उजार जुबराज।
सु न सु ीव हरष क प क र आए भु काज॥28॥
भावाथ:-उन सबने जाकर पुकारा क युवराज अंगद वन उजाड़ रह ह। यह सुनकर सु ीव ह षत ए क वानर भु का काय कर आए ह॥28॥
चौपाई :
ज न हो त सीता सु ध पाई। मधुबन के फल सक ह क काई॥
ए ह ब ध मन बचार कर राजा। आइ गए क प स हत समाजा॥1॥
भावाथ:-य द सीताजी क था न पाई होती तो ा वे मधुवन के फल खा सकते थे? इस कार राजा सु ीव मन म वचार कर ही रह थे क समाज स हत वानर आ
गए॥1॥
आइ सब नावा पद सीसा। मलेउ सब अ त ेम कपीसा॥
पूँछी कु सल कु सल पद दखी। राम कृ पाँ भा काजु बसेषी॥2॥
भावाथ:-(सबने आकर सु ीव के चरण म सर नवाया। क पराज सु ीव सभी से बड़ ेम के साथ मले। उ ने कु शल पूछी, (तब वानर ने उ र दया-) आपके
चरण के दशन से सब कु शल ह। ी रामजी क कृ पा से वशेष काय आ (काय म वशेष सफलता ई ह)॥2॥
नाथ काजु क ेउ हनुमाना। राखे सकल क प के ाना॥
सु न सु ीव ब र ते ह मलेऊ क प स हत रघुप त प ह चलेऊ॥3॥
भावाथ:-ह नाथ! हनुमान ने सब काय कया और सब वानर के ाण बचा लए। यह सुनकर सु ीवजी हनुमान्जी से फर मले और सब वानर समेत ी रघुनाथजी
के पास चले॥3॥
राम क प जब आवत दखा। कएँ काजु मन हरष बसेषा॥
फ टक सला बैठ ौ भाई। पर सकल क प चरन जाई॥4॥
भावाथ:- ी रामजी ने जब वानर को काय कए ए आते दखा तब उनके मन म वशेष हष आ। दोन भाई टक शला पर बैठ थे। सब वानर जाकर उनके चरण
पर गर पड़॥4॥
दोहा :
ी त स हत सब भट रघुप त क ना पुंज॥
पूछी कु सल नाथ अब कु सल द ख पद कं ज॥29॥
भावाथ:-दया क रा श ी रघुनाथजी सबसे ेम स हत गले लगकर मले और कु शल पूछी। (वानर ने कहा-) ह नाथ! आपके चरण कमल के दशन पाने से अब
कु शल ह॥29॥
चौपाई :
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ कर तु दाया॥
ता ह सदा सुभ कु सल नरंतर। सुर नर मु न स ता ऊपर॥1॥
भावाथ:-जा वान् ने कहा- ह रघुनाथजी! सु नए। ह नाथ! जस पर आप दया करते ह, उसे सदा क ाण और नरंतर कु शल ह। दवता, मनु और मु न सभी उस पर
स रहते ह॥1॥
सोइ बजई बनई गुन सागर। तासु सुजसु ैलोक उजागर॥
भु क कृ पा भयउ सबु काजू। ज हमार सुफल भा आजू॥2॥
भावाथ:-वही वजयी ह, वही वनयी ह और वही गुण का समु बन जाता ह। उसी का सुंदर यश तीन लोक म का शत होता ह। भु क कृ पा से सब काय आ।
आज हमारा ज सफल हो गया॥2॥
नाथ पवनसुत क जो करनी। सहस ँ मुख न जाइ सो बरनी॥
पवनतनय के च रत सुहाए। जामवंत रघुप त ह सुनाए॥3॥
भावाथ:-ह नाथ! पवनपु हनुमान् ने जो करनी क , उसका हजार मुख से भी वणन नह कया जा सकता। तब जा वान् ने हनुमान्जी के सुंदर च र (काय) ी
रघुनाथजी को सुनाए॥3॥
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पा न ध मनarticles
अ त भाए। news
पु न हनुofमyour
ान हर ष हयँ लाए॥
कह तात केlatest
ह भाँ त जानकand। रह त कर त र ा ान क ॥4॥
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भावाथ:-(वे च रEnter
) सुनने पर कृ पा न ध ी रामचंदजी के मन को ब त ही अ े लगे। उ ने ह षत होकर हनुमान्जी को फर दय से लगा लया और कहा- ह तात!
कहो, सीता कस कार रहती और अपने ाण क र ा करती ह?॥4॥
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दोहा :
नाम पाह Also
दवस नfreeस meditation
ान तु ार कपाट।
लोचन नज पद get
जं त जा ह ान केejournals.
ह बाट॥30॥
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) आपका नाम रात- दन पहरा दने वाला ह, आपका ान ही कवाड़ ह। ने को अपने चरण म लगाए रहती ह, यही ताला लगा ह, फर
ाण जाएँ तो कस माग से?॥30॥
चौपाई :
चलत मो ह चूड़ाम न दी । रघुप त दयँ लाइ सोइ ली ी॥
नाथ जुगल लोचन भ र बारी। बचन कह कछ जनककु मारी॥1॥
भावाथ:-चलते समय उ ने मुझे चूड़ाम ण (उतारकर) दी। ी रघुनाथजी ने उसे लेकर दय से लगा लया। (हनुमान्जी ने फर कहा-) ह नाथ! दोन ने म जल
भरकर जानक जी ने मुझसे कु छ वचन कह-॥1॥
अनुज समेत गह भु चरना। दीन बंधु नतार त हरना॥
मन म बचन चरन अनुरागी। के ह अपराध नाथ ह ागी॥2॥
भावाथ:-छोट भाई समेत भु के चरण पकड़ना (और कहना क) आप दीनबंधु ह, शरणागत के ुःख को हरने वाले ह और म मन, वचन और कम से आपके चरण क
अनुरा गणी ँ । फर ामी (आप) ने मुझे कस अपराध से ाग दया?॥2॥
अवगुन एक मोर म माना। बछरत ान न क पयाना॥
नाथ सो नयन को अपराधा। नसरत ान कर ह ह ठ बाधा॥3॥
भावाथ:-(हाँ) एक दोष म अपना (अव ) मानती ँ क आपका वयोग होते ही मेर ाण नह चले गए, कतु ह नाथ! यह तो ने का अपराध ह जो ाण के नकलने
म हठपूवक बाधा दते ह॥3॥
बरह अ ग न तनु तूल समीरा। ास जरइ छन मा ह सरीरा॥
नयन व ह जलु नज हत लागी। जर न पाव दह बरहागी॥4॥
भावाथ:- वरह अ ह, शरीर ई ह और ास पवन ह, इस कार (अ और पवन का संयोग होने से) यह शरीर णमा म जल सकता ह, परंतु ने अपने हत के
लए भु का प दखकर (सुखी होने के लए) जल (आँ सू) बरसाते ह, जससे वरह क आग से भी दह जलने नह पाती॥4॥
सीता कै अ त बप त बसाला। बन ह कह भ ल दीनदयाला॥5॥
भावाथ:-सीताजी क वप ब त बड़ी ह। ह दीनदयालु! वह बना कही ही अ ी ह (कहने से आपको बड़ा ेश होगा)॥5॥
दोहा :
न मष न मष क ना न ध जा ह कलप सम बी त।
बे ग च लअ भु आ नअ भुज बल खल दल जी त॥31॥
भावाथ:-ह क णा नधान! उनका एक-एक पल क के समान बीतता ह। अतः ह भु! तुरतं च लए और अपनी भुजाओं के बल से ु के दल को जीतकर सीताजी
को ले आइए॥31॥
चौपाई :
सु न सीता ुख भु सुख अयना। भ र आए जल रा जव नयना॥
बचन कायँ मन मम ग त जाही। सपने ँ बू झअ बप त क ताही॥1॥
भावाथ:-सीताजी का ुःख सुनकर सुख के धाम भु के कमल ने म जल भर आया (और वे बोले-) मन, वचन और शरीर से जसे मेरी ही ग त (मेरा ही आ य) ह,
उसे ा म भी वप हो सकती ह?॥1॥
कह हनुमंत बप त भु सोई। जब तव सु मरन भजन न होई॥
के तक बात भु जातुधान क । रपु ह जी त आ नबी जानक ॥2॥
भावाथ:-हनुमान्जी ने कहा- ह भु! वप तो वही (तभी) ह जब आपका भजन- रण न हो। ह भो! रा स क बात ही कतनी ह? आप श ु को जीतकर
जानक जी को ले आवगे॥2॥
सुनु क प तो ह समान उपकारी। न ह कोउ सुर नर मु न तनुधारी॥
त उपकार कर का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥3॥
भावाथ:-(भगवान् कहने लगे-) ह हनुमान्! सुन, तेर समान मेरा उपकारी दवता, मनु अथवा मु न कोई भी शरीरधारी नह ह। म तेरा ुपकार (बदले म उपकार) तो
ा क ँ , मेरा मन भी तेर सामने नह हो सकता॥3॥
सुनु सुत तो ह उ रन म नाह । दखेउँ क र बचार मन माह ॥
पु न पु न क प ह चतव सुर ाता। लोचन नीर पुलक अ त गाता॥4॥
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:-ह पु ! सुन, मने मन म (खूब) वचार करके दख लया क म तुझसे उऋण नह हो सकता। दवताओं के र क भु बार-बार हनुमान्जी को दख रह ह। ने म
ेमा ुओ ं काlatest
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भरा ह और शरीर अ ंत पुल कत ह॥4॥
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दोहा :
सु न भु बचन Enter
बलो Your
क मुEmail
ख गात हर ष हनुमंत।
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चौपाई :
बार बार भु चहइ उठावा। ेम मगन ते ह उठब न भावा॥
भु कर पंकज क प क सीसा। सु म र सो दसा मगन गौरीसा॥1॥
भावाथ:- भु उनको बार-बार उठाना चाहते ह, परंतु ेम म डबे ए हनुमान्जी को चरण से उठना सुहाता नह । भु का करकमल हनुमान्जी के सर पर ह। उस त
का रण करके शवजी ेमम हो गए॥1॥
सावधान मन क र पु न संकर। लागे कहन कथा अ त सुंदर॥
क प उठाई भु दयँ लगावा। कर ग ह परम नकट बैठावा॥2॥
भावाथ:- फर मन को सावधान करके शंकरजी अ ंत सुंदर कथा कहने लगे- हनुमान्जी को उठाकर भु ने दय से लगाया और हाथ पकड़कर अ ंत नकट बैठा
लया॥2॥
क क प रावन पा लत लंका। के ह ब ध दहउ ुग अ त बंका॥
भु स जाना हनुमाना। बोला बचन बगत अ भमाना॥3॥
भावाथ:-ह हनुमान्! बताओ तो, रावण के ारा सुर त लंका और उसके बड़ बाँके कले को तुमने कस तरह जलाया? हनुमान्जी ने भु को स जाना और वे
अ भमानर हत वचन बोले- ॥3॥
साखामग कै ब ड़ मनुसाई। साखा त साखा पर जाई॥
ना घ सधु हाटकपुर जारा। न सचर गन ब ध ब पन उजारा॥4॥
भावाथ:-बंदर का बस, यही बड़ा पु षाथ ह क वह एक डाल से ू सरी डाल पर चला जाता ह। मने जो समु लाँघकर सोने का नगर जलाया और रा सगण को
मारकर अशोक वन को उजाड़ डाला,॥4॥
सो सब तव ताप रघुराई। नाथ न कछ मो र भुताई॥5॥
भावाथ:-यह सब तो ह ी रघुनाथजी! आप ही का ताप ह। ह नाथ! इसम मेरी भुता (बड़ाई) कु छ भी नह ह॥5॥
दोहा :
ता क ँ भु कछ अगम न ह जा पर तु अनुकूल।
तव भावँ बड़वानल ह जा र सकइ खलु तूल॥33॥
भावाथ:-ह भु! जस पर आप स ह , उसके लए कु छ भी क ठन नह ह। आपके भाव से ई (जो यं ब त ज ी जल जाने वाली व ु ह) बड़वानल को
न य ही जला सकती ह (अथात् असंभव भी संभव हो सकता ह)॥3॥
चौपाई :
नाथ भग त अ त सुखदायनी। द कृ पा क र अनपायनी॥
सु न भु परम सरल क प बानी। एवम ु तब कहउ भवानी॥1॥
भावाथ:-ह नाथ! मुझे अ ंत सुख दने वाली अपनी न ल भ कृ पा करके दी जए। हनुमान्जी क अ ंत सरल वाणी सुनकर, ह भवानी! तब भु ी रामचं जी ने
‘एवम ु’ (ऐसा ही हो) कहा॥1॥
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दोहा :
क पप त बे ग बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु ब थ॥34॥
भावाथ:-वानरराज सु ीव ने शी ही वानर को बुलाया, सेनाप तय के समूह आ गए। वानर-भालुओ ं के ुंड अनेक रंग के ह और उनम अतुलनीय बल ह॥34॥
चौपाई :
भु पद पंकज नाव ह सीसा। गज ह भालु महाबल क सा॥
दखी राम सकल क प सेना। चतइ कृ पा क र रा जव नैना॥1॥
भावाथ:-वे भु के चरण कमल म सर नवाते ह। महान् बलवान् रीछ और वानर गरज रह ह। ी रामजी ने वानर क सारी सेना दखी। तब कमल ने से कृ पापूवक
उनक ओर डाली॥1॥
राम कृ पा बल पाइ क पदा। भए प जुत मन ँ ग रदा॥
हर ष राम तब क पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥2॥
भावाथ:-राम कृ पा का बल पाकर े वानर मानो पंखवाले बड़ पवत हो गए। तब ी रामजी ने ह षत होकर ान (कू च) कया। अनेक सुंदर और शुभ शकु न
ए॥2॥
जासु सकल मंगलमय क ती। तासु पयान सगुन यह नीती॥
भु पयान जाना बैदह । फर क बाम अँग जनु क ह दह ॥3॥
भावाथ:- जनक क त सब मंगल से पूण ह, उनके ान के समय शकु न होना, यह नी त ह (लीला क मयादा ह)। भु का ान जानक जी ने भी जान लया।
उनके बाएँ अंग फड़क-फड़ककर मानो कह दते थे ( क ी रामजी आ रह ह)॥3॥
जोइ जोइ सगुन जान क ह होई। असगुन भयउ रावन ह सोई॥
चला कटकु को बरन पारा। गज ह बानर भालु अपारा॥4॥
भावाथ:-जानक जी को जो-जो शकु न होते थे, वही-वही रावण के लए अपशकु न ए। सेना चली, उसका वणन कौन कर सकता ह? असं वानर और भालू गजना
कर रह ह॥4॥
नख आयुध ग र पादपधारी। चले गगन म ह इ ाचारी॥
के ह रनाद भालु क प करह । डगमगा ह द ज च रह ॥5॥
भावाथ:-नख ही जनके श ह, वे इ ानुसार (सव बेरोक-टोक) चलने वाले रीछ-वानर पवत और वृ को धारण कए कोई आकाश माग से और कोई पृ ी पर
चले जा रह ह। वे सह के समान गजना कर रह ह। (उनके चलने और गजने से) दशाओं के हाथी वच लत होकर च ाड़ रह ह॥5॥
छं द :
च र ह द ज डोल म ह ग र लोल सागर खरभर।
मन हरष सभ गंधब सुर मु न नाग कनर ुख टर॥
कटकट ह मकट बकट भट ब को ट को ट धावह ।
जय राम बल ताप कोसलनाथ गुन गन गावह ॥1॥
भावाथ:- दशाओं के हाथी च ाड़ने लगे, पृ ी डोलने लगी, पवत चंचल हो गए (काँपने लगे) और समु खलबला उठ। गंधव, दवता, मु न, नाग, क र सब के सब
मन म ह षत ए’ क (अब) हमार ुःख टल गए। अनेक करोड़ भयानक वानर यो ा कटकटा रह ह और करोड़ ही दौड़ रह ह। ‘ बल ताप कोसलनाथ ी
रामचं जी क जय हो’ ऐसा पुकारते ए वे उनके गुणसमूह को गा रह ह॥1॥
स ह सक न भार उदार अ हप त बार बार ह मोहई।
गह दसन पु न पु न कमठ पृ कठोर सो क म सोहई॥
रघुबीर चर यान त जा न परम सुहावनी।
जनु कमठ खपर सपराज सो लखत अ बचल पावनी॥2॥
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11/11/2019 स ूण सुंदरका अ ाय Sundarkand Complete Chapter Hindi हदी – HariBhakt | History, Facts, Awareness of Hinduism
भावाथGet
:-उदार (परम े एवं महान्) सपराज शेषजी भी सेना का बोझ नह सह सकते, वे बार-बार मो हत हो जाते (घबड़ा जाते) ह और पुनः-पुनः क प क कठोर
पीठ को दाँतlatest
से पकड़ते ह। ऐसा करते (अथात् बार-बार दाँत को गड़ाकर क प क पीठ पर लक र सीख चते ए) वे कै से शोभा द रह ह मानो ी रामचं जी क
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सुंदर ान याchoice ा को inपरम सुहinbox.
your ावनी जानकर उसक अचल प व कथा को सपराज शेषजी क प क पीठ पर लख रह ह ॥2॥
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न ध उतर सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बपुल क प बीर॥35॥
भावाथ:-इसAlsoकार कृ पा नधान ी रामजी समु तट पर जा उतर। अनेक रीछ-वानर वीर जहाँ-तहाँ फल खाने लगे॥35॥
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चौपाई :
उहाँ नसाचर रह ह ससंका। जब त जा र गयउ क प लंका॥
नज नज गृहँ सब कर ह बचारा। न ह न सचर कु ल के र उबारा।1॥
भावाथ:-वहाँ (लंका म) जब से हनुमान्जी लंका को जलाकर गए, तब से रा स भयभीत रहने लगे। अपने-अपने घर म सब वचार करते ह क अब रा स कु ल क
र ा (का कोई उपाय) नह ह॥1॥
जासु ू त बल बर न न जाई। ते ह आएँ पुर कवन भलाई॥
ू त सन सु न पुरजन बानी। मंदोदरी अ धक अकु लानी॥2॥
भावाथ:- जसके ू त का बल वणन नह कया जा सकता, उसके यं नगर म आने पर कौन भलाई ह (हम लोग क बड़ी बुरी दशा होगी)? ू तय से नगरवा सय के
वचन सुनकर मंदोदरी ब त ही ाकु ल हो गई॥2॥
रह स जो र कर प त पग लागी। बोली बचन नी त रस पागी॥
कं त करष ह र सन प रहर । मोर कहा अ त हत हयँ धर ॥3॥
भावाथ:-वह एकांत म हाथ जोड़कर प त (रावण) के चरण लगी और नी तरस म पगी ई वाणी बोली- ह यतम! ी ह र से वरोध छोड़ दी जए। मेर कहने को
अ ंत ही हतकर जानकर दय म धारण क जए॥3॥
समुझत जासु ू त कइ करनी। व ह गभ रजनीचर घरनी॥
तासु ना र नज स चव बोलाई। पठव कं त जो चह भलाई॥4॥
भावाथ:- जनके ू त क करनी का वचार करते ही ( रण आते ही) रा स क य के गभ गर जाते ह, ह ार ामी! य द भला चाहते ह, तो अपने मं ी को
बुलाकर उसके साथ उनक ी को भेज दी जए॥4॥
दोहा :
तव कु ल कमल ब पन ुखदाई। सीता सीत नसा सम आई॥
सुन नाथ सीता बनु दी । हत न तु ार संभु अज क ॥5॥
भावाथ:-सीता आपके कु ल पी कमल के वन को ुःख दने वाली जाड़ क रा के समान आई ह। ह नाथ। सु नए, सीता को दए (लौटाए) बना श ु और ा के
कए भी आपका भला नह हो सकता॥5॥
दोहा :
राम बान अ ह गन स रस नकर नसाचर भेक।
जब लFree
ग सतBedtime
न तब ल ग जतनु कर त ज टक॥36॥
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:- ी रामजी के बाण सप के समूह के समान ह और रा स के समूह मढक के समान। जब तक वे इ स नह लेते ( नगल नह जाते) तब तक हठ छोड़कर
उपाय कर लीlatest
जए॥articles
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चौपाई :
वन सुनी सठ ता क र बानी। बहसा जगत ब दत अ भमानी॥
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दोहा :
स चव बैद गुर ती न ज य बोल ह भय आस
राज धम तन ती न कर होइ बे गह नास॥37॥
भावाथ:-मं ी, वै और गु - ये तीन य द (अ स ता के ) भय या (लाभ क ) आशा से ( हत क बात न कहकर) य बोलते ह (ठकु र सुहाती कहने लगते ह), तो
( मशः) रा , शरीर और धम- इन तीन का शी ही नाश हो जाता ह॥37॥
चौपाई :
सोइ रावन क ँ बनी सहाई। अ ु त कर ह सुनाइ सुनाई॥
अवसर जा न बभीषनु आवा। ाता चरन सीसु ते ह नावा॥1॥
भावाथ:-रावण के लए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी ह। मं ी उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) ु त करते ह। (इसी समय) अवसर जानकर वभीषणजी आए।
उ ने बड़ भाई के चरण म सर नवाया॥1॥
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पु न सGetनाइ बैठ नज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृ पाल पूlatest
ँ छ मोarticles
ह बाता। म त अनु प कहउँ हत ताता॥2॥
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भावाथ:- फर सेEnter
सरYour
नवाकर अपने आसन पर बैठ गए और आ ा पाकर ये वचन बोले- ह कृ पाल जब आपने मुझसे बात (राय) पूछी ही ह, तो ह तात! म अपनी बु
के अनुसार आपके हत कEmail
बातAddress
कहता ँ -॥2॥
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जो आपन चाह क ाना। सुजसु सुम त सुभ ग त सुख नाना॥
सो परना र Also
ललार गोसा । तजउ चउ थ के चंद क ना ॥3॥
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भावाथ:-जो मनु अपना क ाण, सुंदर यश, सुबु , शुभ ग त और नाना कार के सुख चाहता हो, वह ह ामी! पर ी के ललाट को चौथ के चं मा क तरह
ाग द (अथात् जैसे लोग चौथ के चं मा को नह दखते, उसी कार पर ी का मुख ही न दखे)॥3॥
चौदह भुवन एक प त होई। भूत ोह त इ न ह सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥
भावाथ:-चौदह भुवन का एक ही ामी हो, वह भी जीव से वैर करके ठहर नह सकता (न हो जाता ह) जो मनु गुण का समु और चतुर हो, उसे चाह थोड़ा भी
लोभ न हो, तो भी कोई भला नह कहता॥4॥
दोहा :
काम ोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब प रह र रघुबीर ह भज भज ह जे ह संत॥38॥
भावाथ:-ह नाथ! काम, ोध, मद और लोभ- ये सब नरक के रा े ह, इन सबको छोड़कर ी रामचं जी को भ जए, ज संत (स ु ष) भजते ह॥38॥
चौपाई :
तात राम न ह नर भूपाला। भुवने र काल कर काला॥
अनामय अज भगवंता। ापक अ जत अना द अनंता॥1॥
भावाथ:-ह तात! राम मनु के ही राजा नह ह। वे सम लोक के ामी और काल के भी काल ह। वे (संपूण ऐ य, यश, ी, धम, वैरा एवं ान के भंडार)
भगवान् ह, वे नरामय ( वकारर हत), अज ,े ापक, अजेय, अना द और अनंत ह॥1॥
गो ज धेनु दव हतकारी। कृ पा सधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ाता। बेद धम र क सुनु ाता॥2॥
भावाथ:-उन कृ पा के समु भगवान् ने पृ ी, ा ण, गो और दवताओं का हत करने के लए ही मनु शरीर धारण कया ह। ह भाई! सु नए, वे सेवक को आनंद दने
वाले, ु के समूह का नाश करने वाले और वेद तथा धम क र ा करने वाले ह॥2॥
ता ह बय त ज नाइअ माथा। नतार त भंजन रघुनाथा॥
द नाथ भु क ँ बैदही। भज राम बनु हतु सनेही॥3॥
भावाथ:-वैर ागकर उ म क नवाइए। वे ी रघुनाथजी शरणागत का ुःख नाश करने वाले ह। ह नाथ! उन भु (सव र) को जानक जी द दी जए और बना
ही कारण ेह करने वाले ी रामजी को भ जए॥3॥
दोहा :
सरन गएँ भु ता न ागा। ब ोह कृ त अघ जे ह लागा॥
जासु नाम य ताप नसावन। सोइ भु गट समु ु जयँ रावन॥4॥
भावाथ:- जसे संपूण जगत् से ोह करने का पाप लगा ह, शरण जाने पर भु उसका भी ाग नह करते। जनका नाम तीन ताप का नाश करने वाला ह, वे ही भु
(भगवान्) मनु प म कट ए ह। ह रावण! दय म यह समझ ली जए॥4॥
दोहा :
बार बार पद लागउँ बनय करउँ दससीस।
प रह र मान मोह मद भज कोसलाधीस॥39क॥
भावाथ:-ह दशशीश! म बार-बार आपके चरण लगता ँ और वनती करता ँ क मान, मोह और मद को ागकर आप कोसलप त ी रामजी का भजन क जए॥
39 (क)॥
भावाथ:-(रावन Enter
ने कहा-) ये दोन मूख श ु क म हमा बखान रह ह। यहाँ कोई ह? इ ू र करो न! तब मा वान् तो घर लौट गया और वभीषणजी हाथ जोड़कर
फर कहने लगे-॥2॥Your Email Address
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सुम त कु म त सब क उर रहह । नाथ पुरान नगम अस कहह ॥
जहाँ सुम तAlso
तहँ get
संपfree
त नाना। जहाँ कु म त तहँ बप त नदाना॥3॥
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भावाथ:-ह नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते ह क सुबु (अ ी बु ) और कु बु (खोटी बु ) सबके दय म रहती ह, जहाँ सुबु ह, वहाँ नाना कार क संपदाएँ
(सुख क त) रहती ह और जहाँ कु बु ह वहाँ प रणाम म वप ( ु ःख) रहती ह॥3॥
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दोहा :
रामु स संक भु सभा कालबस तो र।
म रघुबीर सरन अब जाउँ द ज न खो र॥41॥
भावाथ:- ी रामजी स संक एवं (सवसमथ) भु ह और (ह रावण) तु ारी सभा काल के वश ह। अतः म अब ी रघुवीर क शरण जाता ँ , मुझे दोष न दना॥
41॥
चौपाई :
अस क ह चला बभीषनु जबह । आयू हीन भए सब तबह ॥
साधु अव ा तुरत भवानी। कर क ान अ खल कै हानी॥1॥
भावाथ:-ऐसा कहकर वभीषणजी ही चले, ही सब रा स आयुहीन हो गए। (उनक मृ ु न त हो गई)। ( शवजी कहते ह-) ह भवानी! साधु का अपमान
तुरतं ही संपूण क ाण क हा न (नाश) कर दता ह॥1॥
रावन जब ह बभीषन ागा। भयउ बभव बनु तब ह अभागा॥
चलेउ हर ष रघुनायक पाह । करत मनोरथ ब मन माह ॥2॥
भावाथ:-रावण ने जस ण वभीषण को ागा, उसी ण वह अभागा वैभव (ऐ य) से हीन हो गया। वभीषणजी ह षत होकर मन म अनेक मनोरथ करते ए ी
रघुनाथजी के पास चले॥2॥
द खहउँ जाइ चरन जलजाता। अ न मृ ुल सेवक सुखदाता॥
जे पद पर स तरी रषनारी। दंडक कानन पावनकारी॥3॥
भावाथ:-(वे सोचते जाते थे-) म जाकर भगवान् के कोमल और लाल वण के सुंदर चरण कमल के दशन क ँ गा, जो सेवक को सुख दने वाले ह, जन चरण का
श पाकर ऋ ष प ी अह ा तर ग और जो दंडकवन को प व करने वाले ह॥3॥
जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कु रंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभा म द खहउँ तेई॥4॥
भावाथ:- जन चरण को जानक जी ने दय म धारण कर रखा ह, जो कपटमृग के साथ पृ ी पर (उसे पकड़ने को) दौड़ थे और जो चरणकमल सा ात् शवजी के
दय पी सरोवर म वराजते ह, मेरा अहोभा ह क उ को आज म दखूँगा॥4॥
दोहा :
ज पाय के पा ुक भरतु रह मन लाइ।
ते पद आजु बलो कहउँ इ नयन अब जाइ॥42॥
भावाथ:- जन चरण क पा ुकाओं म भरतजी ने अपना मन लगा रखा ह, अहा! आज म उ चरण को अभी जाकर इन ने से दखूँगा॥42॥
चौपाई :
ऐ ह ब ध करत स ेम बचारा। आयउ सप द स ु ए ह पारा॥
क प बभीषनु आवत दखा। जाना कोउ रपु ू त बसेषा॥1॥
भावाथ:-इस कार ेमस हत वचार करते ए वे शी ही समु के इस पार ( जधर ी रामचं जी क सेना थी) आ गए। वानर ने वभीषण को आते दखा तो उ ने
जाना क श ु का कोई खास ू त ह॥1॥
ता ह रा ख कपीस प ह आए। समाचार सब ता ह सुनाए॥
कह सु ीव सुन रघुराई। आवा मलन दसानन भाई॥2॥
भावाथ:-उ (पहर पर) ठहराकर वे सु ीव के पास आए और उनको सब समाचार कह सुनाए। सु ीव ने ( ी रामजी के पास जाकर) कहा- ह रघुनाथजी! सु नए,
रावण का भाई (आप से) मलने आया ह॥2॥
कह भु सखा बू झए काहा। कहइ कपीस सुन नरनाहा॥
जा न न जाइ नसाचर माया। काम प के ह कारन आया॥3॥
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:- भु ी रामजी ने कहा- ह म ! तुम ा समझते हो (तु ारी ा राय ह)? वानरराज सु ीव ने कहा- ह महाराज! सु नए, रा स क माया जानी नह जाती।
यह इ ानुसlatest
ार पarticles
बदलनेand
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(छली ) न जाने कस कारण आया ह॥3॥
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भावाथ:-(जान पड़ता ह) यह मूख हमारा भेद लेने आया ह, इस लए मुझे तो यही अ ा लगता ह क इसे बाँध रखा जाए। ( ी रामजी ने कहा-) ह म ! तुमने नी त तो
अ ी वचारी , परंतु मेरा ण तो ह शरणागत के भय को हर लेना!॥4॥
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भावाथ:-ह नाथ! म दशमुख रावण का भाई ँ । ह दवताओं के र क! मेरा ज रा स कु ल म आ ह। मेरा तामसी शरीर ह, भाव से ही मुझे पाप य ह, जैसे उ ू
को अंधकारAlso
पर get
सहज ेह होता ह॥4॥
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दोहा :
वन सुजसु सु न आयउँ भु भंजन भव भीर।
ा ह ा ह आर त हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥
भावाथ:-म कान से आपका सुयश सुनकर आया ँ क भु भव (ज -मरण) के भय का नाश करने वाले ह। ह ु खय के ुःख ू र करने वाले और शरणागत को
सुख दने वाले ी रघुवीर! मेरी र ा क जए, र ा क जए॥45॥
चौपाई :
अस क ह करत दंडवत दखा। तुरत उठ भु हरष बसेषा॥
दीन बचन सु न भु मन भावा। भुज बसाल ग ह दयँ लगावा॥1॥
भावाथ:- भु ने उ ऐसा कहकर दंडवत् करते दखा तो वे अ ंत ह षत होकर तुरतं उठ। वभीषणजी के दीन वचन सुनने पर भु के मन को ब त ही भाए। उ ने
अपनी वशाल भुजाओं से पकड़कर उनको दय से लगा लया॥1॥
अनुज स हत म ल ढग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥
क लंकेस स हत प रवारा। कु सल कु ठाहर बास तु ारा॥2॥
भावाथ:-छोट भाई ल णजी स हत गले मलकर उनको अपने पास बैठाकर ी रामजी भ के भय को हरने वाले वचन बोले- ह लंकेश! प रवार स हत अपनी
कु शल कहो। तु ारा नवास बुरी जगह पर ह॥2॥
खल मंडली बस दनु राती। सखा धरम नबहइ के ह भाँती॥
म जानउँ तु ा र सब रीती। अ त नय नपुन न भाव अनीती॥3॥
भावाथ:- दन-रात ु क मंडली म बसते हो। (ऐसी दशा म) ह सखे! तु ारा धम कस कार नभता ह? म तु ारी सब री त (आचार- वहार) जानता ँ । तुम
अ ंत नी त नपुण हो, तु अनी त नह सुहाती॥3॥
ब भल बास नरक कर ताता। ु संग ज न दइ बधाता॥
अब पद द ख कु सल रघुराया। ज तु क जा न जन दाया॥4॥
भावाथ:-ह तात! नरक म रहना वरन् अ ा ह, परंतु वधाता ु का संग (कभी) न द। ( वभीषणजी ने कहा-) ह रघुनाथजी! अब आपके चरण का दशन कर कु शल
से ँ , जो आपने अपना सेवक जानकर मुझ पर दया क ह॥4॥
दोहा :
तब ल ग कु सल न जीव क ँ सपने ँ मन ब ाम।
जब ल ग भजत न राम क ँ सोक धाम त ज काम॥46॥
भावाथ:-तब तक जीव क कु शल नह और न म भी उसके मन को शां त ह, जब तक वह शोक के घर काम ( वषय-कामना) को छोड़कर ी रामजी को नह
भजता॥46॥
चौपाई :
तब ल ग दयँ बसत खल नाना। लोभ मोह म र मद माना॥
जब ल ग उर न बसत रघुनाथा। धर चाप सायक क ट भाथा॥1॥
भावाथ:-लोभ, मोह, म र (डाह), मद और मान आ द अनेक ु तभी तक दय म बसते ह, जब तक क धनुष-बाण और कमर म तरकस धारण कए ए ी
रघुनाथजी दय म नह बसते॥1॥
ममता त न तमी अँ धआरी। राग ष उलूक सुखकारी॥
तब ल ग बस त जीव मन माह । जब ल ग भु ताप र ब नाह ॥2॥
भावाथ:-ममता पूण अँधेरी रात ह, जो राग- ष पी उ ुओ ं को सुख दने वाली ह। वह (ममता पी रा ) तभी तक जीव के मन म बसती ह, जब तक भु (आप) का
ताप पी सूय उदय नह होता॥2॥
अब म कु सल मट भय भार। द ख राम पद कमल तु ार॥
तु कृ पाल जा पर अनुकूला। ता ह न ाप बध भव सूला॥3॥
भावाथ:-ह ी रामजी! आपके चरणार व के दशन कर अब म कु शल से ँ , मेर भारी भय मट गए। ह कृ पालु! आप जस पर अनुकूल होते ह, उसे तीन कार के
भवशूल (आ ा क, आ धद वक और आ धभौ तक ताप) नह ापते॥3॥
म न सचर अ त अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु क न ह काऊ॥
जासु प मु न ान न आवा। ते ह भु हर ष दयँ मो ह लावा॥4॥
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:-म अ ंत नीच भाव का रा स ँ । मने कभी शुभ आचरण नह कया। जनका प मु नय के भी ान म नह आता, उन भु ने यं ह षत होकर मुझे
दय से लगाlatest
लया॥ 4॥
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दोहा :
अहोभा मम अEnterमतYour
अ तEmail
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कृ पा सुख पुंज।
दखेउँ नयन बरं च SUBSCRIBE!
सव से जुगल पद कं ज॥47॥
भावाथ:-ह कृAlsoपाget
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ी रामजी! मेरा अ ंत असीम सौभा ह, जो मने ा और शवजी के ारा से वत युगल चरण कमल को अपने ने से दखा॥
47॥
चौपाई :
सुन सखा नज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुं ड संभु ग रजाऊ॥
ज नर होइ चराचर ोही। आवै सभय सरन त क मोही॥1॥
भावाथ:-( ी रामजी ने कहा-) ह सखा! सुनो, म तु अपना भाव कहता ँ , जसे काकभुशु , शवजी और पावतीजी भी जानती ह। कोई मनु (संपूण) जड़-
चेतन जगत् का ोही हो, य द वह भी भयभीत होकर मेरी शरण तक कर आ जाए,॥1॥
त ज मद मोह कपट छल नाना। करउँ स ते ह साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सु द प रवारा॥2॥
भावाथ:-और मद, मोह तथा नाना कार के छल-कपट ाग द तो म उसे ब त शी साधु के समान कर दता ँ । माता, पता, भाई, पु , ी, शरीर, धन, घर, म
और प रवार॥2॥
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मन ह बाँध ब र डोरी॥
समदरसी इ ा कछ नाह । हरष सोक भय न ह मन माह ॥3॥
भावाथ:-इन सबके मम पी ताग को बटोरकर और उन सबक एक डोरी बनाकर उसके ारा जो अपने मन को मेर चरण म बाँध दता ह। (सार सांसा रक संबंध
का क मुझे बना लेता ह), जो समदश ह, जसे कु छ इ ा नह ह और जसके मन म हष, शोक और भय नह ह॥3॥
अस स न मम उर बस कै स। लोभी दयँ बसइ धनु जैस॥
तु सा रखे संत य मोर। धरउँ दह न ह आन नहोर॥4॥
भावाथ:-ऐसा स न मेर दय म कै से बसता ह, जैसे लोभी के दय म धन बसा करता ह। तुम सरीखे संत ही मुझे य ह। म और कसी के नहोर से (कृ त तावश)
दह धारण नह करता॥4॥
दोहा :
सगुन उपासक पर हत नरत नी त ढ़ नेम।
ते नर ान समान मम ज क ज पद ेम॥48॥
भावाथ:-जो सगुण (साकार) भगवान् के उपासक ह, ू सर के हत म लगे रहते ह, नी त और नयम म ढ़ ह और ज ा ण के चरण म ेम ह, वे मनु मेर ाण
के समान ह॥48॥
चौपाई :
सुनु लंकेस सकल गुन तोर। तात तु अ तसय य मोर॥।
राम बचन सु न बानर जूथा। सकल कह ह जय कृ पा ब था॥1॥
भावाथ:-ह लंकाप त! सुनो, तु ार अंदर उपयु सब गुण ह। इससे तुम मुझे अ ंत ही य हो। ी रामजी के वचन सुनकर सब वानर के समूह कहने लगे- कृ पा के
समूह ी रामजी क जय हो॥1॥
सुनत बभीषनु भु कै बानी। न ह अघात वनामृत जानी॥
पद अंबुज ग ह बार ह बारा। दयँ समात न ेमु अपारा॥2॥
भावाथ:- भु क वाणी सुनते ह और उसे कान के लए अमृत जानकर वभीषणजी अघाते नह ह। वे बार-बार ी रामजी के चरण कमल को पकड़ते ह अपार ेम ह,
दय म समाता नह ह॥2॥
सुन दव सचराचर ामी। नतपाल उर अंतरजामी॥
उर कछ थम बासना रही। भु पद ी त स रत सो बही॥3॥
भावाथ:-( वभीषणजी ने कहा-) ह दव! ह चराचर जगत् के ामी! ह शरणागत के र क! ह सबके दय के भीतर क जानने वाले! सु नए, मेर दय म पहले कु छ
वासना थी। वह भु के चरण क ी त पी नदी म बह गई॥3॥
अब कृ पाल नज भग त पावनी। द सदा सव मन भावनी॥
एवम ु क ह भु रनधीरा। मागा तुरत सधु कर नीरा॥4॥
भावाथ:-अब तो ह कृ पालु! शवजी के मन को सदव य लगने वाली अपनी प व भ मुझे दी जए। ‘एवम ु’ (ऐसा ही हो) कहकर रणधीर भु ी रामजी ने तुरतं
ही समु का जल माँगा॥4॥
जद प सखा तव इ ा नह । मोर दरसु अमोघ जग माह ॥
अस कFree
ह रामBedtime
तलक ते ह सारा। सुमन बृ नभ भई अपारा॥5॥
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:-(और कहा-) ह सखा! य प तु ारी इ ा नह ह, पर जगत् म मेरा दशन अमोघ ह (वह न ल नह जाता)। ऐसा कहकर ी रामजी ने उनको राज तलक
कर दया। आकाश से पु क अपार वृ ई॥5॥
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दोहा :
रावन ोध अनलEnterनजYour Email
ास समीर
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चंड।
जरत बभीषनु राखेउSUBSCRIBE!
दी ेउ राजु अखंड॥49क॥
भावाथ:- ीAlso
रामजी free
ने रावण क ोध पी अ म, जो अपनी ( वभीषण क ) ास (वचन) पी पवन से चंड हो रही थी, जलते ए वभीषण को बचा लया और
उसे अखंड रा getदया॥ 49 (क)॥
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सुनु कपीस लंकाप त बीरा। के ह ब ध त रअ जल ध गंभीरा॥
संकुल मकर उरग झष जाती। अ त अगाध ु र सब भाँ त॥3॥
भावाथ:-ह वीर वानरराज सु ीव और लंकाप त वभीषण! सुनो, इस गहर समु को कस कार पार कया जाए? अनेक जा त के मगर, साँप और मछ लय से भरा
आ यह अ ंत अथाह समु पार करने म सब कार से क ठन ह॥3॥
कह लंकेस सुन रघुनायक। को ट सधु सोषक तव सायक॥
ज प तद प नी त अ स गाई। बनय क रअ सागर सन जाई॥4॥
भावाथ:- वभीषणजी ने कहा- ह रघुनाथजी! सु नए, य प आपका एक बाण ही करोड़ समु को सोखने वाला ह (सोख सकता ह), तथा प नी त ऐसी कही गई ह
(उ चत यह होगा) क (पहले) जाकर समु से ाथना क जाए॥4॥
दोहा :
भु तु ार कु लगुर जल ध क ह ह उपाय बचा र॥
बनु यास सागर त र ह सकल भालु क प धा र॥50॥
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:-ह भु! समु आपके कु ल म बड़ (पूवज) ह, वे वचारकर उपाय बतला दगे। तब रीछ और वानर क सारी सेना बना ही प र म के समु के पार उतर
जाएगी॥50latest
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चौपाई :
सखा कही तु Enter
नी तYour
उपाई। क रअ दव ज होइ सहाई।
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मं न यह ल छमन मन भावा।
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राम बचन सु न अ त ुख पावा॥1॥
भावाथ:-( Also
ी रामजीfree
ने कहा-) ह सखा! तुमने अ ा उपाय बताया। यही कया जाए, य द दव सहायक ह । यह सलाह ल णजी के मन को अ ी नह लगी। ी
रामजी के वचन get
सुनकर तो उ ने ब त ही ुःख पाया॥1॥
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चौपाई :
तुरत नाइ ल छमन पद माथा। चले ू त बरनत गुन गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस त नाए॥1॥
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:-ल णजी के चरण म म क नवाकर, ी रामजी के गुण क कथा वणन करते ए ू त तुरत
ं ही चल दए। ी रामजी का यश कहते ए वे लंका म आए
और उ ने latest
रावण केarticles
चरण and
म सर नवाए॥1॥
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दोहा :
क भइ भट क फ र गए वन सुजसु सु न मोर।
कह स न रपु दल तेज बल ब त च कत चत तोर ॥53॥
भावाथ:-उनसे तेरी भट ई या वे कान से मेरा सुयश सुनकर ही लौट गए? श ु सेना का तेज और बल बताता नह ? तेरा च ब त ही च कत (भ च ा सा) हो
रहा ह॥53॥
चौपाई :
नाथ कृ पा क र पूँछ जैस। मान कहा ोध त ज तैस॥
मला जाइ जब अनुज तु ारा। जात ह राम तलक ते ह सारा॥1॥
भावाथ:-( ू त ने कहा-) ह नाथ! आपने जैसे कृ पा करके पूछा ह, वैसे ही ोध छोड़कर मेरा कहना मा नए (मेरी बात पर व ास क जए)। जब आपका छोटा भाई ी
रामजी से जाकर मला, तब उसके प ँ चते ही ी रामजी ने उसको राज तलक कर दया॥1॥
दोहा :
रावन ू त हम ह सु न काना। क प बाँ ध दी ुख नाना॥
वन ना सका काट लागे। राम सपथ दी हम ागे॥2॥
भावाथ:-हम रावण के ू त ह, यह कान से सुनकर वानर ने हम बाँधकर ब त क दए, यहाँ तक क वे हमार नाक-कान काटने लगे। ी रामजी क शपथ दलाने
पर कह उ ने हमको छोड़ा॥2॥
पूँ छ नाथ राम कटकाई। बदन को ट सत बर न न जाई॥
नाना बरन भालु क प धारी। बकटानन बसाल भयकारी॥3॥
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:-ह नाथ! आपने ी रामजी क सेना पूछी, सो वह तो सौ करोड़ मुख से भी वणन नह क जा सकती। अनेक रंग के भालु और वानर क सेना ह, जो भयंकर
मुख वाले, वशाल शरीर वाले और भयानक ह॥3॥
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भावाथ:- जसने नगर को जलाया और आपके पु अ य कु मार को मारा, उसका बल तो सब वानर म थोड़ा ह। असं नाम वाले बड़ ही कठोर और भयंकर यो ा
ह। उनम असंAlso getहाfree
थयmeditation
का बल हejournals.
और वे बड़ ही वशाल ह॥4॥
दोहा :
बद मयंद नील नल अंगद गद बकटा स।
द धमुख के ह र नसठ सठ जामवंत बलरा स॥54॥
भावाथ:- वद, मयंद, नील, नल, अंगद, गद, वकटा , द धमुख, के सरी, नशठ, शठ और जा वान् ये सभी बल क रा श ह॥54॥
चौपाई :
ए क प सब सु ीव समाना। इ सम को ट गनइ को नाना॥
राम कृ पाँ अतु लत बल त ह । तृन समान ैलोक ह गनह ॥1॥
भावाथ:-ये सब वानर बल म सु ीव के समान ह और इनके जैसे (एक-दो नह ) करोड़ ह, उन ब त सो को गन ही कौन सकता ह। ी रामजी क कृ पा से उनम
अतुलनीय बल ह। वे तीन लोक को तृण के समान (तु ) समझते ह॥1॥
अस म सुना वन दसकं धर। प ुम अठारह जूथप बंदर॥
नाथ कटक महँ सो क प नाह । जो न तु ह जीतै रन माह ॥2॥
भावाथ:-ह दश ीव! मने कान से ऐसा सुना ह क अठारह प तो अके ले वानर के सेनाप त ह। ह नाथ! उस सेना म ऐसा कोई वानर नह ह, जो आपको रण म न
जीत सके ॥2॥
परम ोध मीज ह सब हाथा। आयसु पै न द ह रघुनाथा॥
सोष ह सधु स हत झष ाला। पूर ह न त भ र कु धर बसाला॥3॥
भावाथ:-सब के सब अ ंत ोध से हाथ मीजते ह। पर ी रघुनाथजी उ आ ा नह दते। हम मछ लय और साँप स हत समु को सोख लगे। नह तो बड़-बड़
पवत से उसे भरकर पूर (पाट) दगे॥3॥
म द गद मलव ह दससीसा। ऐसेइ बचन कह ह सब क सा॥
गज ह तज ह सहज असंका। मान ँ सन चहत ह ह लंका॥4॥
भावाथ:-और रावण को मसलकर धूल म मला दगे। सब वानर ऐसे ही वचन कह रह ह। सब सहज ही नडर ह, इस कार गरजते और डपटते ह मानो लंका को
नगल ही जाना चाहते ह॥4॥
दोहा :
सहज सूर क प भालु सब पु न सर पर भु राम।
रावन काल को ट क ँ जी त सक ह सं ाम॥55॥
भावाथ:-सब वानर-भालू सहज ही शूरवीर ह फर उनके सर पर भु (सव र) ी रामजी ह। ह रावण! वे सं ाम म करोड़ काल को जीत सकते ह॥55॥
चौपाई :
राम तेज बल बु ध बपुलाई। सेष सहस सत सक ह न गाई॥
सक सर एक सो ष सत सागर। तव ात ह पूँछउ नय नागर॥1॥
भावाथ:- ी रामचं जी के तेज (साम ), बल और बु क अ धकता को लाख शेष भी नह गा सकते। वे एक ही बाण से सैकड़ समु को सोख सकते ह, परंतु
नी त नपुण ी रामजी ने (नी त क र ा के लए) आपके भाई से उपाय पूछा॥1॥
तासु बचन सु न सागर पाह । मागत पंथ कृ पा मन माह ॥
सुनत बचन बहसा दससीसा। ज अ स म त सहाय कृ त क सा॥2॥
भावाथ:-उनके (आपके भाई के ) वचन सुनकर वे ( ी रामजी) समु से राह माँग रह ह, उनके मन म कृ पा भी ह (इस लए वे उसे सोखते नह )। ू त के ये वचन सुनते ही
रावण खूब हँ सा (और बोला-) जब ऐसी बु ह, तभी तो वानर को सहायक बनाया ह!॥2॥
सहज भी कर बचन ढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥
मूढ़ मृषा का कर स बड़ाई। रपु बल बु थाह म पाई॥3॥
भावाथ:- ाभा वक ही डरपोक वभीषण के वचन को माण करके उ ने समु से मचलना (बालहठ) ठाना ह। अर मूख! ठू ी बड़ाई ा करता ह? बस, मने श ु
(राम) के बल और बु क थाह पा ली॥3॥
भावाथ:-(और कहा -) ी रामजी के छोट भाई ल ण ने यह प का दी ह। ह नाथ! इसे बचवाकर छाती ठं डी क जए। रावण ने हँ सकर उसे बाएँ हाथ से लया और
मं ी को बुलवाकर वह मूख उसे बँचाने लगा॥5॥
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दोहा :
बात मन हAlsoरझाइ सठ ज न घाल स कु ल खीस।
राम बरोध न उबर स सरन ब ु अज ईस॥56क॥
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भावाथ:-(प का म लखा था-) अर मूख! के वल बात से ही मन को रझाकर अपने कु ल को न - न कर। ी रामजी से वरोध करके तू व ,ु ा और महश
क शरण जाने पर भी नह बचेगा॥56 (क)॥
क त ज मान अनुज इव भु पद पंकज भृंग।
हो ह क राम सरानल खल कु ल स हत पतंग॥56ख॥
भावाथ:-या तो अ भमान छोड़कर अपने छोट भाई वभीषण क भाँ त भु के चरण कमल का मर बन जा। अथवा र ु ! ी रामजी के बाण पी अ म प रवार
स हत प तगा हो जा (दोन म से जो अ ा लगे सो कर)॥56 (ख)॥
चौपाई :
सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सब ह सुनाई॥
भू म परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बलासा॥1॥
भावाथ:-प का सुनते ही रावण मन म भयभीत हो गया, परंतु मुख से (ऊपर से) मु ु राता आ वह सबको सुनाकर कहने लगा- जैसे कोई पृ ी पर पड़ा आ हाथ से
आकाश को पकड़ने क चे ा करता हो, वैसे ही यह छोटा तप ी (ल ण) वा लास करता ह (ड ग हाँकता ह)॥1॥
कह सुक नाथ स सब बानी। समुझ छा ड़ कृ त अ भमानी॥
सुन बचन मम प रह र ोधा। नाथ राम सन तज बरोधा॥2॥
भावाथ:-शुक ( ू त) ने कहा- ह नाथ! अ भमानी भाव को छोड़कर (इस प म लखी) सब बात को स सम झए। ोध छोड़कर मेरा वचन सु नए। ह नाथ! ी
रामजी से वैर ाग दी जए॥2॥
अ त कोमल रघुबीर सुभाऊ। ज प अ खल लोक कर राऊ॥
मलत कृ पा तु पर भु क रही। उर अपराध न एकउ ध रही॥3॥
भावाथ:-य प ी रघुवीर सम लोक के ामी ह, पर उनका भाव अ ंत ही कोमल ह। मलते ही भु आप पर कृ पा करगे और आपका एक भी अपराध वे
दय म नह रखगे॥3॥
जनकसुता रघुनाथ ह दीजे। एतना कहा मोर भु क जे॥
जब ते ह कहा दन बैदही। चरन हार क सठ तेही॥4॥
भावाथ:-जानक जी ी रघुनाथजी को द दी जए। ह भु! इतना कहना मेरा क जए। जब उस ( ू त) ने जानक जी को दने के लए कहा, तब ु रावण ने उसको लात
मारी॥4॥
नाइ चरन स चला सो तहाँ। कृ पा सधु रघुनायक जहाँ॥
क र नामु नज कथा सुनाई। राम कृ पाँ आप न ग त पाई॥5॥
भावाथ:-वह भी ( वभीषण क भाँ त) चरण म सर नवाकर वह चला, जहाँ कृ पासागर ी रघुनाथजी थे। णाम करके उसने अपनी कथा सुनाई और ी रामजी क
कृ पा से अपनी ग त (मु न का प) पाई॥5॥
र ष अग क साप भवानी। राछस भयउ रहा मु न ानी॥
बं द राम पद बार ह बारा। मु न नज आ म क ँ पगु धारा॥6॥
भावाथ:-( शवजी कहते ह-) ह भवानी! वह ानी मु न था, अग ऋ ष के शाप से रा स हो गया था। बार-बार ी रामजी के चरण क वंदना करके वह मु न अपने
आ म को चला गया॥6॥
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दोहा :
बनय न मानत जल ध जड़ गए ती न दन बी त।
बोले राम सकोप तब भय बनु होइ न ी त॥57॥
भावाथ:-इधर तीन दन बीत गए, कतु जड़ समु वनय नह मानता। तब ी रामजी ोध स हत बोले- बना भय के ी त नह होती!॥57॥
चौपाई :
ल छमन बान सरासन आनू। सोष बा र ध ब सख कृ सानु॥
सठ सन बनय कु टल सन ी त। सहज कृ पन सन सुंदर नी त॥1॥
भावाथ:-ह ल ण! धनुष-बाण लाओ, म अ बाण से समु को सोख डालूँ। मूख से वनय, कु टल के साथ ी त, ाभा वक ही कं जूस से सुंदर नी त (उदारता का
उपदश),॥1॥
ममता रत सन ान कहानी। अ त लोभी सन बर त बखानी॥
ो ध ह सम का म ह ह रकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥2॥
भावाथ:-ममता म फँ से ए मनु से ान क कथा, अ ंत लोभी से वैरा का वणन, ोधी से शम (शां त) क बात और कामी से भगवान् क कथा, इनका वैसा ही
फल होता ह जैसा ऊसर म बीज बोने से होता ह (अथात् ऊसर म बीज बोने क भाँ त यह सब थ जाता ह)॥2॥
अस क ह रघुप त चाप चढ़ावा। यह मत ल छमन के मन भावा॥
संधानेउ भु ब सख कराला। उठी उद ध उर अंतर ाला॥3॥
भावाथ:-ऐसा कहकर ी रघुनाथजी ने धनुष चढ़ाया। यह मत ल णजी के मन को ब त अ ा लगा। भु ने भयानक (अ ) बाण संधान कया, जससे समु के
दय के अंदर अ क ाला उठी॥3॥
मकर उरग झष गन अकु लाने। जरत जंतु जल न ध जब जाने॥
कनक थार भ र म न गन नाना। ब प आयउ त ज माना॥4॥
भावाथ:-मगर, साँप तथा मछ लय के समूह ाकु ल हो गए। जब समु ने जीव को जलते जाना, तब सोने के थाल म अनेक म णय (र ) को भरकर अ भमान
छोड़कर वह ा ण के प म आया॥4॥
दोहा :
काट ह पइ कदरी फरइ को ट जतन कोउ स च।
बनय न मान खगेस सुनु डाट ह पइ नव नीच॥58॥
भावाथ:-(काकभुशु जी कहते ह-) ह ग ड़जी! सु नए, चाह कोई करोड़ उपाय करके स चे, पर के ला तो काटने पर ही फलता ह। नीच वनय से नह मानता, वह
डाँटने पर ही क
ु ता ह (रा े पर आता ह)॥58॥
सभय सधु ग ह पद भु के र। छम नाथ सब अवगुन मेर॥।
गगन समीर अनल जल धरनी। इ कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥
भावाथ:-समु ने भयभीत होकर भु के चरण पकड़कर कहा- ह नाथ! मेर सब अवगुण (दोष) मा क जए। ह नाथ! आकाश, वायु, अ , जल और पृ ी- इन
सबक करनी भाव से ही जड़ ह॥1॥
तव े रत मायाँ उपजाए। सृ हतु सब ंथ न गाए॥
भु आयसु जे ह कहँ जस अहई। सो ते ह भाँ त रह सुख लहई॥2॥
भावाथ:-आपक ेरणा से माया ने इ सृ के लए उ कया ह, सब ंथ ने यही गाया ह। जसके लए ामी क जैसी आ ा ह, वह उसी कार से रहने म
सुख पाता ह॥2॥
भु भल क मो ह सख दी । मरजादा पु न तु री क ॥
ढोल गवाँर सू पसु नारी। सकल ताड़ना के अ धकारी॥3॥
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:- भु ने अ ा कया जो मुझे श ा (दं ड) दी, कतु मयादा (जीव का भाव) भी आपक ही बनाई ई ह। ढोल, गँवार, शू , पशु और ी- ये सब श ा के
अ धकारी ह॥ 3॥
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मासपारायण, चौबीसवाँ व ाम
इ त ीम ामच रतमानसे सकलक लकलुष व ंसने पंचमः सोपानः समा ः।
क लयुग के सम पाप का नाश करने वाले ी रामच रत मानस का यह पाँचवाँ सोपान समा आ।
(सुंदरका समा )
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%e0%a4%95%e0%a4%a5%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a5%87/)
सु रका का इ तहास
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© HariBhakt
Jai Shree Krishn,
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Arja
I can’t read sanskrit so can read the hindi version? Will it harm? Please guide..
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Jai Shree Krishn,
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Rajeev
ब त सुंदर
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DINESH AGRAWAL
Jai Sri ram
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© HariBhakt
जय ी राम
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